History

प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध

प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध
प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध

प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध

प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध– हेलो दोस्तों आप सब छात्रों के समक्ष “प्रथम आंग्ल मैसूर युद्ध, द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध, तृतीय आंग्ल मैसूर युद्ध और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध के बारे में विस्तार बारे में बतायेंगे. जो छात्र SSC, PCS, IAS, UPSC, UPPPCS, Civil Services  या अन्य Competitive Exams की तैयारी कर रहे है है उनके लिए ये ‘ आंग्ल मैसूर युद्ध के बारे में पढना काफी लाभदायक साबित होगा. 

Regulating Act 1773 History in Hindi

प्रथम द्वितीय तृतीय और चतुर्थ आंग्ल मैसूर युद्ध

1761 ई. में हैदरअली मैसूर राज्य का शासक बना। शासक बनने के बाद उसने अपनी शक्ति और राज्य का विस्तार किया। धीरे-धीरे उसने आसपास के क्षेत्रों जैसे-बेदनुर, सुंडा कनारा, सेरा, गूटी आदि पर अधिकार कर लिया तथा बल्लापुर, रायदुर्ग एवं चित्तलदुर्ग के शासकों को अपनी अधीनता स्वीकार करने के लिए बाध्य किया। हैदरअली की बढ़ती शक्ति से मराठों, हैदराबाद के निजाम तथा अंग्रेजों को ईर्ष्या होने लगी। 1765 ई. में मराठों, निजाम व अंग्रेजों ने मिलकर हैदरअली पर आक्रमण कर दिया। किन्तु 1766 ई. में हैदरअली ने चतुराई से मराठों तथा निजाम को अपनी ओर मिला लिया। अतः अब उसे अंग्रेजों का ही सामना करना था।
 

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767 से 1769 ई. तक)

 
    हैदरअली तथा अंग्रेजों के मध्य युद्ध के प्रमुख कारण थे–1-दोनों ही अपने प्रभाव क्षेत्र में वृद्धि करना चाहते थे, 2-अंग्रेज हैदरअली के विरुद्ध षड्यन्त्र रच रहे थे, 3-हैदरअली अंग्रजों के कटु शत्रु फ्रांसीसियों से मित्रता करना चाहता था, 4-1767 ई. में हैदरअली ने कन्नड़ तट पर अंग्रेजों के एक जहाजी बेड़े को नष्ट कर दिया था।
     बंगाल की विजय से उत्साहित अंग्रेजों ने 1767 ई. में मैसूर पर आक्रमण कर दिया। इस युद्ध में अंग्रेजी सेना का नेतृत्व “सर जनरल स्मिथ” कर रहा था। इस युद्ध के प्रारम्भ में अंग्रेजों को सफलता मिली। जब उन्होंने चंगामा तथा त्रिनोमली नामक स्थान जीत लिये। किन्तु बाद में हैदरअली ने अंग्रेजों को चारों ओर से घेर लिया। उसने अंग्रेजों को हराकर 1768 ई. में मंगलौर और बम्बई पर अधिकार कर लिया। इसके बाद हैदरअली की सेनाओं ने मार्च 1769 ई. में मद्रास को तीन ओर से घेर लिया। अंग्रेजों ने विवश होकर 4 अप्रैल 1769 ई. में मद्रास की सन्धि की।
 

मद्रास की सन्धि (4 अप्रैल 1769 ई.)

 
    यह सन्धि हैदरअली तथा अंग्रेजों के बीच में हुई। इस सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रदेश लौटा दिये। अंग्रेजों ने क्षतिपूर्ति के रूप में हैदरअली को काफी मात्रा में धन दिया। दोनों पक्षों ने संकट के समय एक दूसरे की सहायता करने का वचन दिया।

द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780-1784 ई.)

    द्वितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध के निम्नलिखित कारण थे-1-हैदरअली ने अंग्रेजों पर दोष लगाया कि अंग्रेज 1769 ई. की सन्धि का उल्लंघन कर रहे हैं क्योंकि जब 1771 ई. में मराठों ने हैदरअली पर आक्रमण किया। तो सन्धि के अनुरूप अंग्रेजों ने उसकी सहायता नहीं की।
2-अंग्रेजों ने माहे नामक फ्रांसीसी बस्ती पर अधिकार कर लिया, जो मैसूर राज्य की थी। इससे मैसूर राज्य और अंग्रेजों के बीच दूरियां और बढ़ गयी।
3-हैदरअली ने अंग्रेजों के खिलाफ 1779 ई. में निजाम तथा मराठों के साथ मिलकर एक त्रिगुट संघ की स्थापना की। जिससे अंग्रेज हैदरअली से रुष्ठ हो गये।
    उपर्युक्त कारणों से द्वितीय आंग्ल मैसूर युद्ध  अपरिहार्य हुआ। 1780 ई. में हैदरअली ने विशाल सेना लेकर अंग्रेजों के मित्र कर्नाटक के नवाब पर आक्रमण कर दिया। नवाब ने भागकर मद्रास में शरण ली। जब यह समाचार अंग्रेजों को मालूम हुआ। तो उन्होंने हैदरअली के खिलाप युद्ध की घोषणा कर दी। और हैदरअली के विरुद्ध एक सेना मद्रास से हेक्टर मुनरो के नेतृत्व में तथा दूसरी सेना कर्नल बेली के नेतृत्व में गुंटूर से भेजी। हैदरअली ने कर्नल बेली की सेना को परास्त कर अर्काट पर अधिकार कर लिया। बेली की पराजय सुन हेक्टर मुनरो मद्रास वापस चला गया। जब अंग्रेजों की पराजय का समाचार बंगाल पहुँचा तो वारेन हेस्टिंग्स ने सर आयरकूट की अध्यक्षता में एक सेना दक्षिण भारत भेजी। आयरकूट ने कूटनीति का प्रयोग कर मराठों तथा निजाम को अपने पक्ष में कर लिया। जिससे उन्होंने हैदरअली को सहायता देना बन्द कर दिया। किन्तु हैदरअली के उत्साह में कोई कमी नहीं आयी, वह डटकर अंग्रेजों का मुकाबला करता रहा। फिर भी नवम्बर 1781 ई. में सर आयरकूट ने हैदरअली को पोर्टोनोवा व पिलीलोर के युद्ध परास्त कर दिया। किन्तु अगले वर्ष ही हैदरअली ने कर्नल ब्रेथवेट के अधीन अंग्रेजी सेना को बुरी तरह परास्त कर दिया। अभी अंग्रेजों से युद्ध चल ही रहा था कि 7 दिसम्बर 1782 ई. में हैदरअली की मृत्यु हो गयी। उधर सर आयरकूट की भी मद्रास में अप्रैल 1783 ई. में मृत्यु हो गयी।
    हैदरअली की मृत्यु के बाद उसके पुत्र टीपू सुल्तान ने युद्ध बन्द नहीं किया युद्ध लगभग एक वर्ष तक जारी रहा। परन्तु किसी भी पक्ष को विजय प्राप्त नहीं हुई। अन्त में टीपू और अंग्रेजों के बीच मंगलौर की सन्धि हुई।
 
मंगलौर की सन्धि (मार्च 1784 ई.)
 
    मार्च 1784 ई. में टीपू सुल्तान तथा मद्रास के अंग्रेज गवर्नर जार्ज मैकार्टनी के बीच मंगलौर की सन्धि हुई। इस सन्धि के अनुसार दोनों पक्षों ने एक दूसरे के जीते हुए प्रदेशों को वापस कर दिया। युद्ध बन्दियों को रिहा कर दिया गया। अंग्रेजों ने आश्वासन दिया कि वह मैसूर के साथ मैत्रीपूर्ण व्यवहार रखेंगे तथा संकट के समय में मैसूर की सहायता करेंगे। अंग्रेजों के साथ यह सन्धि टीपू की उत्कृष्ट सफलता थी। किन्तु इस सन्धि से बंगाल के गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स असहमत था।

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790-1792 ई.)

    मंगलौर की सन्धि के अनुसार ट्रावनकोर राज्य अंग्रेजों के संरक्षण में था। जब ट्रावनकोर के राजा ने कोचीन राज्य के दो सीमान्त प्रदेश जैकोट तथा क्रगानुर डचों से खरीदे। तो टीपू ने इसका विरोध किया क्योंकि टीपू कोचीन रियासत को अपने अधीन मानता था। अतः उसने ट्रावनकोर के राजा से तत्काल वापस कर देने के लिए कहा। किन्तु उसने अनसुना कर दिया। दूसरे ट्रावनकोर ने मैसूर राज्य के कुछ अपराधियों को शरण दे रखी थी। अतः टीपू सुल्तान ने 14 दिसम्बर 1789 ई. में ट्रावनकोर पर आक्रमण कर दिया। चूंकि ट्रावनकोर अंग्रेजों के संरक्षण में था। अतः कार्नवालिस ने टीपू के विरुद्ध युद्ध की घोषणा कर दी। युद्ध प्रारम्भ होने से पूर्व अंग्रेजों ने मराठों तथा निजाम से सन्धि कर ली। इस सन्धि को “त्रिगुट सन्धि” कहा गया। 1790 ई. में अंग्रेज सेना ने जनरल मीडोज के नेतृत्व में मैसूर पर आक्रमण किया किन्तु मीडोज बुरी तरह पराजित हुआ। फलतः दिसम्बर 1790 ई. में मद्रास पहुँच कर स्वयं कार्नवालिस ने सेना का नेतृत्व सम्भाला और श्रीरंगपट्टम पर आक्रमण करने के लिए आगे बढ़ा। उसने मई 1791 ई. में हुए एक घमासान युद्ध में टीपू को पराजित कर दिया। किन्तु युद्ध सामग्री के अभाव और अंग्रेजी सेना में फैली बीमारी के कारण उसे पीछे हटना पड़ा। इसके पश्चात नवम्बर 1791 ई. में उसने पुनः टीपू पर आक्रमण किया। इस बार अंग्रेजों के साथ मराठों तथा निजाम की सेनाएं भी थी। इस संयुक्त सेना ने श्रीरंगपट्टम को घेर लिया। विवश होकर टीपू ने मार्च 1792 ई. में “श्रीरंगपट्टम की सन्धि” करनी पड़ी। सन्धि की शर्तों के अनुसार टीपू को आधा राज्य तथा 3 करोड़ रुपया देना पड़ा। जब तक रुपया न चुका दिया जाये तब तक टीपू के दोनों पुत्र अंग्रेजों के पास बन्धक रहेंगे। इस सन्धि से मैसूर आर्थिक और सामरिक दृष्टि से कमजोर हो गया।

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.)

 
इस युद्ध के समय अंग्रेज कम्पनी का गवर्नर जनरल लार्ड वेलेजली था। उसने टीपू पर फ्रांसीसियों के साथ मिलकर अंग्रेजों के विरुद्ध षड्यन्त्र रचने का आरोप लगा कर फरवरी 1799 ई. में आक्रमण कर दिया। 4 मई 1799 ई. में टीपू सुल्तान वीरगति को प्राप्त हुआ। टीपू की मृत्यु के मैसूर राज्य में मुस्लिम सत्ता का अंत हो गया। मैसूर राज्य का विभाजन कर दिया गया। अंग्रेजों को कनारा, कोयम्बटूर, दारापुरम और श्रीरंगपट्टम के प्रदेश मिले जबकि निजाम को गूटी, गुरमकोंड और चित्तलदुर्ग के प्रदेश मिले।
 
Q-टीपू सुल्तान ने चांदी के कौन कौन से सिक्के चलाये थे?
@-आबिदी (87 ग्रेन), बाकिरी (43 ग्रेन), जाफरी (20 ग्रेन)
Q-हैदरअली ने किस वंश के ध्वंशावशेषों पर मैसूर राज्य की स्थापना की थी।
@-वाडियार राजवंश
Q-हैदरअली ने फ्रांसीसियों की सहायता से आधुनिक शस्त्रागार की स्थापना कहाँ की थी?
@-डिंडीगुल में (1755 ई.)
Q-टीपू सुल्तान किस क्लब का सदस्य था?
@-जैकोबिन क्लब का
Q-श्रीरंगपट्टम में “स्वतंत्रता का वृक्ष” किसने लगवाया था?
@-टीपू सुल्तान ने

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