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इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य हिंदी में

इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य-इस्लाम शब्द का अर्थ है: ‘अल्लाह को समर्पण’. इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया.

इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है, जो अल्लाह की तरफ से अंतिम रसूल और नबी, मुहम्मद द्वारा इंसानों तक पहुंचाई गई अंतिम ईश्वरीय किताब कुरान की शिक्षा पर स्थापित है. इस्लाम शब्द का अर्थ है: ‘अल्लाह को समर्पण’. इस प्रकार मुसलमान वह है, जिसने अपने आपको अल्लाह को समर्पित कर दिया. यानी कि इस्लाम धर्म के नियमों पर चलने लगा. इस्लाम धर्म का आधारभूत सिद्धांत अल्लाह को सर्वशक्तिमान, एकमात्र ईश्वर और जगत का पालक और हजरत मुहम्मद को उनका संदेशवाहक या पैगम्बर मानना है. यही बात उनके ‘कलमे’ में दोहराई जाती है: ‘ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मदुर्रसूलुल्लाह’. यानी कि ‘अल्लाह एक है, उसके अलावा कोई दूसरा (दूसरी सत्ता) नहीं और मुहम्मद उसके रसूल या पैगम्बर.’

इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य:

(1) इस्लाम धर्म के संस्थापक हजरत मुहम्मद थे.

(2) हजरत मुहम्मद का जन्म 570 ई. में मक्का में हुआ था.

(3) हजरत मुहम्मद को 610 ई. में मक्का के पास हीरा नाम की गुफा में ज्ञान की प्राप्ति हुई थी.

(4) 24 सिंतबर को पैगंबर की मक्का से मदीना की यात्रा इस्लाम जगत में मुस्लिम संवत के नाम से जानी जाती है.

(5) हजरत मुहम्मद की शादी 25 साल की उम्र में खदीजा नाम की विधवा से हुई.

(6) हजरत मुहम्मद की बेटी का नाम फतिमा और दामाद का नाम अली हुसैन है.

(7) देवदूत ग्रैब्रियल ने पैगम्‍बर मुहम्मद को कुरान अरबी भाषा में संप्रेषित की.

(8) कुरान इस्लाम धर्म का पवित्र ग्रंथ है.

(9) पैगंबर मुहम्मद ने कुरान की शिक्षाओं का उपदेश दिया.

(10) हजरत मुहम्मद की मृत्यु 8 जून 632 ई. को हुई. इन्हें मदीना में दफनाया गया.

(11) हजरत मुहम्मद की मृत्यु के बाद इस्लाम शिया और सुन्नी दो पंथों में बंट गया.

(12) सुन्नी उन्हें कहते हैं जो सुन्ना में विश्वास रखते हैं. सुन्ना हजरत मुहम्मद के कथनों और कार्यों का विवरण है.

(13) शिया अली की शिक्षाओं में विश्वास रखते हैं और उन्हें हजरत मुहम्मद का उत्तराधिकारी मानते हैं. अली, हजरत मुहम्मद के दामाद थे.

(14) अली की सन 661 में हत्या कर दी गई थी. अली के बेटे हुसैन की हत्या 680 में कर्बला में की गई थी. इन हत्याओं ने शिया को निश्चित मत का रूप दे दिया.

(15) हजरत मुहम्मद के उत्तराधिकारी खलीफा कहलाए.

(16) इस्लाम जगत में खलीफा पद 1924 ई. तक रहा. 1924 में इसे तुर्की के शासक मुस्तफा कमालपाशा ने खत्म कर दिया.

(17) इब्‍न ईशाक ने सबसे पहले हजरत मुहम्मद का जीवन चरित्र लिखा था.

(18) हजरत मुहम्मद के जन्मदिन को ईद-ए-मिलाद-उन-नबी के नाम से मनाया जाता है.

कुरान, इस्लाम और मुसलमान

इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

वर्ष 2010 के एक अध्ययन के मुताबिक दुनिया के दूसरे सबसे बड़े धार्मिक संप्रदाय इस्लाम के तकरीबन 1.6 अरब अनुयायी हैं, जो कि विश्व की आबादी की लगभग 23% हिस्सा हैं जिसमें 80-90 प्रतिशत सुन्नी और 10-20 प्रतिशत शिया हैं। मध्य-पूर्व, उत्तरी अफ्रीका, अफ्रीका का हार्न, सहारा, मध्य एशिया एवं एशिया के अन्य कई हिस्सों में इस्लाम अनुयायी प्रमुखता से पाए जाते हैं।

अल्लाह के द्वारा उतारी गई एवं देवदूत जिब्राएल द्वारा हजरत मुहम्मद को पहली बार सुनाई गई पवित्र कुरान मुस्लिम धर्म की नींव है। कुरान में कुल 114 सूरह, 540 रूकू, 14 सज्दा, 6,666 आयतें, 86,423 शब्द, 32,376 अक्षर, 24 नबियों का जिक्र है।
किंवदंतियों की मानें तो आदम को इस्लाम का पहला नबी यानी पैगम्बर माना जाता है। जिस प्रकार हिन्दू धर्म में मनु की संतानों को मनुष्य कहा जाता है, उसी प्रकार इस्लाम में आदम की संतानों को आदमी कहा जाता है और आदम को ही ईसाइयत में एडम कहा जाता है।
विशेष ज्ञातव्य है कि अल्लाह धरती पर किसी को भेजने से पहले ठीक-ठीक नसीहत देकर भेजता है और कहता है कि सीमित समय के लिए धरती पर जा रहे हों, वहां जाकर नेक कर्म ही करना। कुरान में भी कहा गया है कि सकारात्मक कार्य करो, जीवहत्या, पेड़ काटना, किसी को तकलीफ पहुंचाना, व्यर्थ पानी बहाना, अन्य गलत कार्य कुरान के मुताबिक पाप हैं। प्रत्येक आदमी को वापस अल्लाह के पास ही जाना पड़ेगा, कभी न कभी उसके अच्छे-बुरे कार्यों का हिसाब जरूर होगा। अल्लाह के सारे खलीफा या नबियों का एक ही पैगाम रहता है कि खुदा के बताए हुए राह पर कायम रहो, ईमान रखो और अल्लाह पर भरोसा रखो।
जो हजयात्रा करके वापस आते हैं, उन्हें ‘हाजी’ कहा जाता है। मगर हज तभी कुबूल होती है, जब हज करने वाला शख्स जकात और फितरा को जीवन में उतारकर अल्लाह के रसूलों के मुताबिक कार्य करता है। जो कुरान को अच्छी तरह से जानते, समझते और उसकी आयतों को जुबान पर रखते हों, उन्हें ‘हाफिज’ कहा जाता है। रमजान के महीने में मुसलमान अक्सर नमाज अदा करते हैं, रोजा रखते हैं, तकरीर भी करते हैं। कुरानशरीफ को आसानी से समझने और रसूलों से वाकिफ होने के लिए मौलवियों ने अपने-अपने तरीके से हदीश की विवेचना की है।

इस्लाम धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

कुरान अरबी भाषा में लिखी गई है और इस्लाम एकेश्वरवादी धर्म है। विश्व के कई देशों एवं करोड़ों लोगों द्वारा पढ़ी जाने वाली कुरान के मुख्यत: 5 स्तंभ हैं-
1. शहादा (साक्षी होना)- गवाही देना। ‘ला इलाहा इल्लल्लाह मुहम्मद रसूल अल्लाह’ मतलब अल्लाह के सिवाय और कोई परमेश्वर नहीं है और मुहम्मद, अल्लाह के रसूल हैं इसलिए प्रत्येक मुसलमान अल्लाह के एकेश्वरवादिता और मुहम्मद के रसूल होने के अपने विश्वास की गवाही देता है।
2. सलात (प्रार्थना)- इसे फारसी में नमाज कहते हैं। इस्लाम के अनुसार नमाज अल्लाह के प्रति कृतज्ञता दर्शाती है। मक्का की ओर मुंह करके दिन में 5 वक्त की नमाज हर मुसलमान को अदा करना होता है।
3. रोजा (रमजान)- यानी व्रत। इसके अनुसार रमजान के महीने में प्रत्येक मुसलमान को सूर्योदय से सूर्यास्त तक व्रत रखना अनिवार्य है। भौतिक दुनिया से हटकर ईश्वर को निकटता से अनुभव करना एवं निर्धन, गरीब, भूखों की समस्याओं और परेशानियों का अनुभव करना ही मुख्य उद्देश्य है।
4. जकात- यह वार्षिक दान है। इसके अनुसार प्रत्येक मुसलमान अपनी आय का 2.5% निर्धनों में बांटता है, क्योंकि इस्लाम के अनुसार पूंजी वास्तव में अल्लाह की देन है।
5- हज (तीर्थयात्रा)- इस्लामी कैलेंडर के 12वें महीने में मक्का में जाकर की जाने वाली धार्मिक यात्रा है, परंतु हज उसी की कुबूल होती है, जो आर्थिक रूप से सामान्य हो और हज जाने का खर्च खुद उठा सके।
गौरतलब है कि कुरान के प्रत्येक सूरा के शुरुआत में ‘बिस्मिल्लाहिर्रहमानिर्ररहीम’ आता है। इसका मतलब है कि प्रत्येक मुसलमान प्रार्थना (अल्लाह के नाम से शुरू, जो बहुत मेहरबान रहमत वाला) करता है और कहता है कि ‘हे अल्लाह! तू मुझे अपने बताए हुए उसूलों और ईमान पर चला, तू ही सारे जहान का मालिक है, रहमत वाला है, हम तुझी पर न्योछावर हैं, हमको सीधा रास्ता चला परंतु रास्ता तुझे पाने का हो, न कि बहकाने वालों का हो।’
राम, रहीम एवं हनुमान, रहमान के पैगाम में कोई फर्क नहीं है बशर्ते उसकी प्रार्थना और पाने का रास्ता भिन्न-भिन्न है। जिस कुरान के प्रत्येक सूरा में खुदा से रहमत की बात कही गई हो, वह कभी हिंसात्मक हो ही नहीं सकता। प्रत्येक धर्म में कुर्बानी की बात कही गई है, परंतु उसका यह कतई अर्थ नहीं है कि आप जीव-जंतु, पशु-पक्षी की हत्या करें। कुर्बानी का मतलब यह है कि आप अपनी आवश्यकता से अधिक धन-दौलत एवं विद्या गरीबों और जरूरतमंदों के लिए समर्पित यानी कुर्बान करें।
अशफाक उल्ला खां, इलाहाबाद से लियाकत अली, बरेली से खान बहादुर खां, फैजाबाद से मौलवी अहमद उल्ला, फतेहपुर से असीमुल्ला, मौलाना अबुल कलाम, ब्रिगेडियर एम. उस्मान, मेजर अनवर करीम व अन्य ऐसे तमाम क्रांतिकारी राष्ट्रभक्त थे जिन्होंने जाति-धर्म से ऊपर उठकर भारत मां की आन-बान व शान की रक्षा करने हेतु प्राणों को न्योछावर कर दिया। इस सब महान आत्माओं के लिए धर्म से बढ़कर राष्ट्र था। इन्होंने सही मायने में जीवन को समझा और कुर्बानी दी।
अहिंसा, प्रेम, सद्भाव ही सभी धर्मों का मूल है और सबका मालिक भी एक है। फर्क इतना ही है कि हम उसे अलग-अलग नामों से जानते हैं। आप ही बताइए कि गर दुनिया को चलाने वाला एक है तो उसका पैगाम अलग-अलग कैसे हो सकता है? मानवता ही हम सबका का पहला धर्म है।
अच्छाइयां व बुराइयां प्रत्येक जगह होती हैं, मगर समयोपरांत हम बुराइयों को छोड़कर अच्छाइयों को आत्मसात करते हैं इसलिए आज बाकी धर्मों के साथ-साथ इस्लाम धर्म के अनुयायियों को चाहिए कि वे अपनी मजहबी दुनिया से बाहर निकलकर मानवता एवं संविधान को सर्वोपरि समझें, मजहबी खामियों को दूर करें, सुप्रीम कोर्ट द्वारा तात्कालिक तीन तलाक पर रोक इसी की एक बानगी है और यह फैसला सचमुच काबिले तारीफ भी है।
बेहतर होगा कि इस्लाम धर्म के जानकार और अनुयायी चिंतन करके कौम एवं मानव हित में सकारात्मक बदलाव लाएं, कुरान-ए-शरीफ के बताए हुए सही मार्गों पर चलें। समय के साथ बदलाव अवश्यंभावी है और होना भी चाहिए।

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