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केन्द्रीय  विधायिका-संसद (Parliament of central legislature)| राज्यसभा in Hindi

केन्द्रीय  विधायिका-संसद (Parliament of central legislature)| राज्यसभा

केन्द्रीय  विधायिका-संसद (Parliament of central legislature) भारतीय संविधान में संघीय शासन-व्यवस्था को अपनाया गया है। संघीय शासन-व्यवस्था से अभिप्राय है-केन्द्र में केन्द्रीय स्तर पर शासन चलाने वाली सरकार एवं संघ में सम्मिलित राज्यों में राज्य स्तर पर शासन चलाने वाली सरकार। केन्द्र सरकार के तीन अंग हैं-(i) विधायिका (संसद), (ii) कार्यपालिका तथा (iii) न्यायपालिका।

केन्द्रीय  विधायिका-संसद

केन्द्रीय  विधायिका-संसद

केन्द्रीय  विधायिका-संसद

भारतीय संविधान में केन्द्रीय विधायिका को संसद कहा गया है। जिसे आंग्ल भाषा में “पार्लियामेण्ट” कहते हैं। “पार्लियामेण्ट’ शब्द ब्रिटिश शासन प्रणाली से सम्बन्धित है। अमेरिकी शासन व्यवस्था में विधायिका को ‘कांग्रेस’ कहा जाता है, जिसका अर्थ है-“लोगों का समूह!” संसद के तीन घटक होते हैं— राष्ट्रपति, लोकसभा और राज्यसभा। भारतीय संसद में दो सदन है-उच्च सदन तथा निम्न सदन। उच्च सदन को राज्यसभा और निम्न सदन को लोकसभा कहते हैं। लोकसभा समस्त भारत का प्रतिनिधित्व करती है और राज्यसभा राज्यों तथा संघीय क्षेत्रों का। दोनों सदनों को सम्मिलित रूप से संसद कहा जाता है।

राज्यसभा की रचना (संगठन)

रचना- राज्यसभा संसद का एक स्थायी, द्वितीय उच्च सदन है। इसका कभी विघटन नहीं होता। राज्यसभा में संघ के इकाई राज्यों के प्रतिनिधि होते है। राज्यसभा में अधिक-से-अधिक 250 सदस्य हो सकते हैं, जिनमें अधिक-से-अधिक 238 निर्वाचित सदस्य तथा 12 सदस्य राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत होते हैं। राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत 2 सदस्य साहित्य, विज्ञान, कला तथा समाज-सेवा आदि के क्षेत्र में प्रख्यात व्यक्ति होते है। इस समय राज्यसभा में कुल 245 सदस्य हैं, जिनमे से 233 सदस्य राज्यों तथा केन्द्रशासित प्रदेशो का प्रतिनिधित्व करने वाले निर्वाचित सदस्य हैं और 12 राष्ट्रपति द्वारा मनोनीत किये गये हैं।

NOTE:

अमेरिका के द्वितीय सदन(सीनेट) में, 100 सदस्य हैं। 50 राज्यों से बने अमेरिका में प्रत्येक राज्य के लिए सीनेट में 2 सदस्यों के समान प्रतिनिधित्व दिया गया है

निर्वाचन- राज्यसभा के सदस्यों का निर्वाचन अप्रत्यक्ष रीति से होता है। निर्वाचन की दृष्टि से भारतीय संघ के राज्य दो श्रेणियों में विभाजित हैं–

  •  वे राज्य जिनमें विधानसभाएँ है।
  • वे राज्य जो केन्द्र द्वारा शासित हैं।

जिन राज्यों में विधानसभाएँ हैं, वहाँ की विधानसभाओं के सदस्य अपने राज्य के प्रतिनिधियो का चुनाव करते है। यह चुनाव आनुपातिक प्रतिनिधित्व पद्धति से एकल संक्रमणीय मत प्रणाला के द्वारा होता है। वे राज्य जिनमें विधानसभाएँ नहीं हैं अर्थात् जा राज्य केन्द्रशासित है, उनके प्रतिनिधियों को निर्वाचित करने का ढंग संसद कानून द्वारा निर्धारित करती है। राज्यसभा के लिए कौन-सा राज्य कितने सदस्य चुनेगा यह संविधान द्वारा पूर्व-निर्धारित कर दिया गया है। गुप्त मतदान के स्थान पर खुले मतदान का प्रावधान सन् 2003 ई० से किया गया है।

सदस्यों की योग्यताएँ- राज्यसभा के उम्मीदवार के लिए आवश्यक है कि वह भारत का नागरिक हो और 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो। वह वे सभी योग्यताएँ रखता हो, जो संसद द्वारा निश्चित की गयी हों और उस राज्य का निवासी हो जहाँ से वह निर्वाचित होना चाहता है।

कार्यकाल- राज्यसभा एक स्थायी सदन है। उसके सदस्यों में से एक-तिहाई सदस्य प्रत्येक दो वर्ष बाद अवकाश ग्रहण करते रहते हैं। इस प्रकार राज्यसभा के सदस्यों का कार्यकाल 6 वर्ष का होता है।

राज्यसभा के प्रत्येक सदस्य को वेतन, निर्वाचन क्षेत्र भत्ता और अधिवेशन के दिनों में दैनिक भत्ता मिलता है। इन्हें प्रतिमास कार्यालय भत्ता भी मिलता है। अवकाशप्राप्त सदस्यों को पेंशन की सुविधा भी प्राप्त है। इन्हें आवास, दूरभाष, चिकित्सा आदि की सुविधाएँ भी प्राप्त होती हैं।

राज्यसभा का सभापति ( उप-राष्ट्रपति) – भारत का उप-राष्ट्रपति राज्यसभा का पदेन सभापति होता है। राज्यसभा का सभापति सदन की बैठकों का सभापतित्व करता है, सभा में व्यवस्था बनाये रखता है, प्रश्नों पर अपना निर्णय देता है तथा मतदान के निर्णय की घोषणा आदि कार्य सम्पन्न करता है। राज्यसभा अपने सदस्यों में से किसी एक को उप-सभापति चुनती है। उप-सभापति के वेतन व भत्ते संसद द्वारा निश्चित किये जाते हैं। सभापति की अनुपस्थिति में उप-सभापति ही सभापति का आसन ग्रहण करता है।

राज्यसभा के कार्य एवं अधिकार

विधायिनी अधिकार राज्यसभा में धन सम्बन्धी विधेयक को छोड़कर अन्य किसी भी प्रकार का विधेयक लोकसभा से पहले भी प्रस्तुत किया जा सकता है। कोई भी प्रस्ताव संसद द्वारा तब तक पारित नहीं समझा जा सकता और उसे राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिए तब तक नहीं भेजा जा सकता, जब तक कि वह दोनों सदनों द्वारा पृथक्-पृथक् पारित न हो|

जब किसी साधारण विधेयक पर गतिरोध की स्थिति उत्पन्न हो जाती है तब दोनों सदनों की संयुक्त बैठक के द्वारा उक्त विधेयक पर निर्णय लिया जाता है। इस संयुक्त बैठक की अध्यक्षता लोकसभा का अध्यक्ष करता है। इस स्थिति में लोकसभा की सदस्य-संख्या अधिक होने से वह विजयी होती है। अत: राज्यसभा किसी भी विधेयक को कानून बनने से नहीं रोक सकती, वह विधेयक को रोककर मात्र छ: महीने की देरी कर सकती है।

वित्तीय अधिकार- राज्यसभा की वित्तीय शक्तियाँ लोकसभा की अपेक्षा बहुत कम हैं। वित्त विधेयक लोकसभा में पारित होने के बाद राज्यसभा में आते हैं। राज्यसभा वित्त विधेयक को 14 दिन तक पारित होने से रोक सकती है। राज्यसभा वित्त विधेयक को चाहे रद्द कर दे या उसमें परिवर्तन कर दे या 14 दिन तक उस पर कोई कार्यवाही न करे, इन सभी दशाओं में वह विधेयक राज्यसभा से पारित समझा जाता है।

शासकीय अधिकार- राज्यसभा की कार्यकारी शक्तियाँ बहुत सीमित हैं। यद्यपि राज्यसभा के सदस्य भी मन्त्रिमण्डल में सम्मिलित किये जाते हैं फिर भी मन्त्रिमण्डल अपने सभी कार्यों के लिए केवल लोकसभा के प्रति उत्तरदायी होता है, राज्यसभा के प्रति नहीं।

राज्यसभा के सदस्य प्रश्नों, काम रोको प्रस्तावों और वाद-विवादों के द्वारा मन्त्रिमण्डल पर अपना नियन्त्रण रखते हैं, परन्तु इस सबके बावजूद भी कार्यपालिका पर राज्यसभा का वास्तविक नियन्त्रण नहीं होता। राज्यसभा को मन्त्रिमण्डल के विरुद्ध अविश्वास प्रस्ताव पारित करके उसे हटाने का भी कोई अधिकार नहीं है।

संविधान संशोधन सम्बन्धी अधिकार राज्यसभा को संविधान में संशोधन करने का अधिकार लोकसभा की तरह ही प्राप्त है। संविधान संशोधन सम्बन्धी विधेयक संसद के किसी भी सदन में प्रस्तुत हो सकता है, अर्थात् संवैधानिक संशोधन प्रस्ताव राज्यसभा में भी प्रस्तावित किया जा सकता है। संविधान में प्रत्येक संशोधन के लिए राज्यसभा के बहुमत की स्वीकृति आवश्यक है, अन्यथा संशोधन नहीं हो सकता।

विविध अधिकार- राज्यसभा के निर्वाचित सदस्य राष्ट्रपति के चुनाव में भी भाग लेते हैं, किन्तु मनोनीत सदस्यों को यह अधिकार प्राप्त नहीं होता। राष्ट्रपति के विरुद्ध महाभियोग लगाने और उसकी जाँच करने तथा उसके बारे में निर्णय देने का अधिकार भी राज्यसभा को है। उच्चतम न्यायालय तथा उच्च न्यायालयों के न्यायाधीशों को उसी समय पदच्युत किया जा सकता है, जब लोकसभा की तरह राज्यसभा भी उनको हटाये जाने के लिए प्रस्ताव पारित कर दे।

अनुच्छेद 249 के अनुसार, राज्यसभा राज्य सूची के किसी विषय को दो-तिहाई बहुमत से राष्ट्रीय महत्त्व का घोषित करके उस विषय पर संसद को कानून बनाने का अधिकार दे सकती है। राज्यसभा इसे प्रति वर्ष एक वर्ष के लिए बढ़ा भी सकती है। यह शक्ति लोकसभा को प्राप्त नहीं होती।

राज्यसभा अपने उपस्थित तथा मत देने वाले दो-तिहाई सदस्यों के बहुमत से नयी अखिल भारतीय सेवाएँ प्रारम्भ करने का अधिकार केन्द्र सरकार को दे सकती है। यह शक्ति भी लोकसभा को प्राप्त नहीं है। ये दोनों राज्यसभा के विशिष्ट अधिकार हैं। राष्ट्रपति द्वारा समय-समय पर निकाली गई घोषणा को जारी करने के लिए लोकसभा की तरह राज्यसभा के भी अर्थात् दोनों सदनों के अनुमोदन की आवश्यकता होती है। यदि घोषणा उस समय की जा रही हो, जब लोकसभा विघटित हो गई हो, तो उस समय घोषणा का राज्यसभा के द्वारा स्वीकृत होना आवश्यक है।

विभिन्न राज्यों और संघीय क्षेत्रों के राज्यसभा में स्थानों का आवंटन

क्रम.सं.

(SR.NO.)

राज्य

(STATES)

कुल पद

(NO. OF SEATS)

  सदस्य संख्या

(NO. OF MEMBERS)

1 आन्ध्र प्रदेश 11 11
2 उत्तराखण्ड 3 3
3 झारखण्ड 6 6
4 हिमाचल प्रदेश 3 3
5 केरल 9 8
6 मणिपुर 1 1
7 जम्मू-कश्मीर 4 4
8 महाराष्ट्र 19 19
9 मिजोरम 1 1
10 पंजाब 7 7
11 बिहार 16 15
12 उत्तर प्रदेश 31 31
13 हरियाणा 5 5
14 छत्तीसगढ़ 5 5
15 मेघालय 1 1
16 सिक्किम 1 1
17 ओडिशा 10 10
18 तमिलनाडु 18 18
19 गोवा 1 1
20 प० बंगाल 16 16
21 असम 7 6
22 गुजरात 11 9
23 त्रिपुरा 1 1
24 अरुणाचल प्रदेश 1 1
25 कर्नाटक 12 12
26 दिल्ली 3 3
27 राजस्थान 10 10
28 पुदुचेरी 1 1
29 मध्य प्रदेश 11 11
30 तेलंगाना 7 7
31 नामांकित(NOMINATED) 12 12
  कुल 245 240

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