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गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi
गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

गयासुद्दीन तुगलक (तुगलक वंश का संस्थापक) | Gayasuddin Tuglaq History in Hindi

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गयासुद्दीन तुगलक (1320 ई.-1325 ई.)

  • यह तुगलक वंश का संस्थापक था। इसका वास्तविक नाम गाजी मलिक था। वह करौना तुर्क शाखा का था। तुगलक उसकी उपाधि थी। अपने नाम में गाजी (काफिरो का वध करने वाला) शब्द जोड़ा था। जन्म से गियासुद्दीन भारतीय था उसकी माता जाट थी।
  • मंगोल को पराजित करने के कारण वह मलिक उल-गाजी के नाम से प्रसिद्ध हुआ। अलाउद्दीन द्वारा चलाई गई, दाग (घोड़ो का चिन्ह) तथा चेहरा-प्रथा (सैनिक पंजिका) को प्रभावशाली ढंग से लागू किया गया।
  • डाक-व्यवस्था अच्छी हो गई थी, दिनों में ही हरकारे देवगिरि से दिल्ली समाचार पहुचा देते थे। डाक प्रणाली को पूर्णत: व्यवस्थित करने का श्रेय गियासुद्दीन को जाता है। उसने अलाउद्दीन के कठोर प्रणाली व उत्तराधिकारियों की अधिक उदारता के बीच मध्यवर्ती नीति अपनायी जिसे रस्मे मियाना (तरीक-ए- एत्दाल) कहा है।
  • 1321 ई. में उसने अपने पुत्र जूना खां (उलूग खां) को एक सेना के साथ तेलंगाना पर आक्रमण करने को भेजा। जूना खां ने राजधानी वारंगल के दुर्ग को घेर लिया एवं प्रताप रूद्रदेव पर सुल्तान की अधीनता स्वीकार करने के लिए दबाव डालना आरंभ कर दिया।
  • तेलंगाना को सुल्तान ने सल्तनत में मिला लिया। वारंगल, जिसका नया नाम सुल्तानपुर रखा गया, दक्षिण में सल्तनत की राजधानी बन गई। यह अब दिल्ली सल्तनत का भाग बन गया।
  • गियासुद्दीन का दूसरा आक्रमण उड़ीसा में स्थित जाजनगर पर हआ। वहां के राजा भानुदेव द्वितीय ने वारंगल के राजा की सहायता की थी। अत:, जूना खां ने वारंगल से वापस आते समय भानुदेव पर 1324 ई. को आक्रमण कर दिया। उलूग खां ने इसपर अपना अधिकार स्थापित किया तथा लूट में मिले धन के साथ वह दिल्ली लौट गया। राजमुंदरी से प्राप्त 1324 ई. के एक अभिलेख से इस विजय की पुष्टि होती है। इसी अभिलेख में जूना खां (उलूग खां) को विश्व का खान कहा गया है।
  • इसने सिंचाई के साधनों विशेषकर नहरों का निर्माण करवाया तथा अकाल संहिता का निर्माण किया। सल्तनत काल में नहर बनाने वाला प्रथम शासक था।
  • इसने जूना खाँ को वारंगल तथा मदुरै में शासन की पुनर्स्थापना के लिए भेजा। उसने दिल्ली के प्रसिद्ध सूफी संत निजामुद्दीन औलिया से भी पैसा (5 लाख टंका) लौटाने के लिए कहा जो उन्हें धार्मिक अनुदान के रूप में खुसरो खां के समय में दिया गया था परंतु निजामुद्दीन औलिया ने यह कह कर दिया। इस घटना के कारण सूफी संत तथा सुल्तान में विरोध बढ़ता गया।
  • बंगाल अभियान के बाद गयासुद्दीन ने शेख निजामुद्दीन को संदेश भेजा कि राजधानी में प्रवेश से पूर्व वह दिल्ली छोड़ दे। शेख का उत्तर था कि दिल्ली अभी दूर (हनूज देहली दूर अस्त) है।
  • 1325 ई. में तिरहुत की विजय के पश्चात दिल्ली लौटते हुए मार्ग (दिल्ली, तुगलुकबाद के निकट अफगानपुर) में ही सुल्तान की मृत्यु हो गई।

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