गांधी युग: 1919-1948

गांधी युग
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गांधी युग: 1919-1948
मोहन दास करमचंद गांधी (1869-1948 ई.) 9 जनवरी को दक्षिण अफ्रीका से भारत वापस आए। वे 1893 ई0 में एक भारतीय मुस्लिम व्यापारी दादा अब्दुला का मुकदमा लड़ने दक्षिण अफ्रीका गए थे। वहाॅ पर उन्होंने भारतीयों के साथ हो रहे भेदभावपूर्ण व्यवहार को देखा। एक बार जब वे दक्षिण अफ्रीका में ट्रेन से यात्रा कर रहे थे तो उसी दौरान मेरित्जबर्ग नामक स्टेशन पर एक अंगे्रज ने धक्का देकर उन्हें ट्रेन से बाहर निकाल दिया। इस घटना से गांधीजी को एक नई दिशा मिली।
अपने दक्षिण अफ्रीका प्रवास के दौरान ही गांधीजी ने भारतीयों के प्रति अपनायी जाने वाली रंगभेद की नीतियों के विरूद्ध संघर्ष प्रारंभ किया। अपने आंदलोन को संगठनात्मक रूप प्रदान करने तथा तथा दिशा देने हेतु उन्होने कई संस्थाओं, जैसे- नटाल इंडियन कांग्रेस, टाॅलस्टाय फर्म (जर्मन शिल्पकार मित्र कालेन बाग की सहायता से) तथा फीनिक्स आश्रम की स्थापना की। दक्षिण में ही गांधी जी ने इंडियन ओपनीयन नामक समाचार पत्र का प्रकाशन भी किया। गांधीजी द्वारा दक्षिण अफ्रीका में सफलतापूर्वक आंदोलन का संचालन किए जाने के परिणामस्वरूप वहां की सरकार द्वारा सन् 1914 ई. तक अधिकांश भेदभावपूर्ण काले कानूनों को रद्द कर दिया गया। यह गांधीजी की प्रथम सफलता थी जो उन्होनें अहिंसा के मार्ग द्वारा प्राप्त की|
गांधी युग
1915ई. में भारत आने के पश्चात् ही गांधीजी का भारतीय राजनीति में पदार्पण हुआ। गंाधीजी ने गोपालकृषण गोखले को अपना राजनीतिक गुरू माना। इस समय प्रथम विश्वयुद्ध चल रहा था तथा गांधीजी ने इस युद्ध में अंग्रेजों का समर्थन किया और भारतीयों को सेना में शामिल होने के लिए प्रोत्साहित किया। इसी कारण से उन्हें ’भर्ती करने वाला सार्जेट’ कहा जाने लगा। ब्रिटिश सरकार ने उन्हें केसर-ए हिंद की उपाधि से विभूषित कया। कांगधी का मानना था कि प्रथम विश्व युद्ध में सहयोग के बदले भारतीयों को स्वराज की प्राप्ति होगी।
गांधीजी ने 1915 ई0 में अहमदाबाद में साबरमती आश्रम की स्थापना की। इसका उद्ेश्य रचनात्मक कार्यों को प्रोत्साहन देना था। गांधीजी का भारतीय राजनीति में एक प्रभावशाली नेता के रूप में उदय उत्तर बिहार के चंपारण आंदोलन, गुजरात के खेड़ा कृषक आंदोलन तथा अहमदाबाद के श्रमिक विवाद का सफलतापूर्वक नेतृत्व करने के पश्चात् हुआ। जहाॅ चंपारण और खेड़ा आंदोलन कृषकों की समस्याओं से सम्बन्धित थे तो वहीं अहमदाबाद के श्रमिकों के विवाद की पृष्ठभूमि में काॅटन टेक्सटाइल मिल-मालिक और मजदूरों के बीच मजदूरी बढ़ाने तथा प्लेग बोनस दिए जाने से संबधित विवाद था। अहमदाबाद में प्लेग की समाप्ति के पश्चात् मिल-मालिक बोनस को समाप्त करना चाहते थे। मिल मालिकों ने केवल 20 प्रतिशत बोनस को स्वीकार किया। और धमकी दी कि जो कर्मचारी यह बोनस नहीं स्वीकार करेगा उसे नौकरी से निकाल दिया जाएगा। गांधीजी 35 प्रतिशत बोनस दिए जाने की मजदूरों की माॅग का समर्थन करते हुए स्वयं हड़ताल पर बैठ गए। इस पूरे प्रकरणपर न्यायाधिकरण ने भी मजदूरों की माॅंग को सही ठहराते हुए 35 प्रतिशत बोनस दिए जाने का आदेश दिया। इन मिल मालिकों में से एक गांधी जी के मित्र अम्बालाल साराभाई भी थे, जिन्होने साबरमती आश्रम के निर्माण हेतु बहुत अधिक मात्रा मे धन दान दिया था। अम्बालाल साराभाई की बहन अनुसुईया भी अहमदाबाद मजदूर आंदोलन मे गांधी के साथ थीं।
गांधी युग
सत्याग्रह के आंरभिक प्रयोग की सफलता ने गांधी जी को जनसाधारण के समीप ला कर खड़ा दिया। गांधीजी के आदर्शों दार्शिनिक चिंतन विचारधारा और जीवन-पद्धिति ने उन्हें साधारण जनता के जीवन के साथ एकीकृत कर दिया। वे गरीब, राष्ट्रवादी एवं विद्रोही भारत के प्रतीक बन गये। हिन्दू-मुस्लिम एकता स्त्रियों की समाजिक स्थिति को सुधारने तथा छुआछूत के विरूद्ध कार्य करना उनके अन्य प्रमुख क्ष्यों में सम्मिलित थे। 1919 ई0 के जलियावाला बाग हत्याकाण्ड ने ब्रिटिश सरकार के प्रति गांधीजी के दृष्टिकोण को परिवर्तित कर दिया।
गांधी युग – कुछ महत्वपूर्ण आन्दोलन
गांधी-दास पैक्ट: नवम्बर 1924
फरवरी 1924 में स्वास्थ्य कारणों से जेल से रिहा होने के पश्चात् नवम्बर 1924 में गांधीजी, सी.आर. दास एवं मोतीलाल नेहरू ने मिलकर एक संयुक्त वक्तव्य प्रस्तुत किया। इसे गांधी-दास पैक्ट के नाम से जाना जाता है। इसकी मुख्य बातों में विधानसभाओं के भीतर स्वराज पार्टी को कांग्रेस के नाम तथा इसके अभिन्न अंग के रूप में कार्य करने का अधिकार प्रदान किय गया। इस पैक्ट की दूसरी महत्वपूर्ण विशेषता यह भी थी कि इसमें यह कहा गया था कि असहयोग अब राष्ट्रीय कार्यक्रम नहीं रहेगा। इसके अतिरिक्त ’आॅल इंडिया स्पिनर्स एसोसिएशन’ को संगठित करने तथा चरखे व करघे का प्रचार-प्रसार करने की जिम्मेदारी गांधीजी को सौंपी गयी। सन् 1924 ई0 के बेलगाँव अधिवेशन, जिसकी अध्यक्षता गांधीजी द्वारा की गई थी, में इस पैक्ट की प्रमुख बातों की पुष्टि की गई।
अन्य राजनीति दल एवं आंदोलन, 1922-27
स्वराज पार्टी के अतिरिक्त 1922-27 की अवधि के मध्य कई अन्य राजनीतिक दलों का उदय हुआ, जिनका विवरण निम्नवत् है-
अखिल-भारतीय मुस्लिम लीग
सन् 1924 में तुर्की में मुस्तफा कमालपाशा के नेतृत्व में खलीफा के पद या खिलाफत को समाप्त कर दिए जाने के उपरांत ’भारतीय खिलाफत समिति’ ने कार्य करना बंद कर दिया। परिणामस्वरूप, 1924 ई0 में अखिल भारतीय मुस्लिम लीग का पुनरूत्थान हुआ और मुहम्मद अली जिन्ना इसके नेता के रूप में उभरे।
हिन्दू महासभा
पंडित मदनमोहन मालवीय ने 1915 ई0 में हरिद्वार में ’हिनदू महासभा’ की स्थापना की। कासिम बाजार के महाराजा की अध्यक्षता में इसका प्रथम सम्मेलन आयोजित किया गया। दिसम्बर 1924 में पंडित मदनमोहन मालवीय के अध्यक्ष बनने के उपरांत यह दल बहुत अधिक प्रभावशाली हो गया।
राष्ट्रीय उदारवादी लीग
तेज बहादुर सप्रू, विपिनचंद्र पाल तथा श्रीनिवास शास्त्री इत्यादि उदारवादी नेताओं द्वारा 1918 ई0 में कांग्रेस से अलग होने के पश्चात् राष्ट्रीय उदारवादी लीग का गइन किया गया, जो कालांतर में ’अखिल भारतीय संघ’ के नाम से प्रसिद्ध हुई। इन्होंने सरकार के साथ सहयोग की नीति का अनुसरण किया। 1923 ई0 के चुनावों के उपरांत इस पार्टी का पूर्णतः सफाया हो गया।
यूनियनिस्ट पार्टी
इस पार्टी का गइन पंजाब में भू-स्वामी वर्गों के हितों की रक्षा के लिए किया गया था। 1937 ई0 के चुनावों में मुस्लिम लीग तथा यूनियनिस्ट पार्टी ने पंजाब में मिली-जुली सरकार की स्थापना की।
अकाली आंदोलन
यह 1922-27 ई0 के मध्य हुए आंदोलनों में सर्वाधिक महत्वपूर्ण था। इस आंदोलन का उद्देश्य सिख गुरुद्वारों को अंग्रेज समर्थक एवं भ्रष्ट आनुवंशिक महन्तों के चंगुल से मुक्त करना था। इस आंदोलन के उग्र स्वरूप को देखते हुए ब्रिटिश सरकार को यह भव्य उत्पन्न हो गया कि यह आंदोलन ब्रिटिश सेना में कार्यरत सिख सैनिकों तथा कृषकों में असंतोष उत्पन्न कर सकता है। परिणामस्वरूप जुलाई 1925 में एक विधेयक पारित किया गया जिसके अंतर्गत ’शिरोमणी गुरुद्वारा प्रबंधक समिति’ की स्थापना की गयी। इस विधेयक के प्रावधानों के अंतर्गत गुरुद्वारा के प्रबंधन तथा पदाधिकारियों एवं कार्यकर्ताओं के चुनाव का अधिकार सिख समुदाय के व्यक्तियों को सौंप दिया गया।
बोरसाद आंदोलन
यह आंदोलन गुजरात के खेड़ा जिले के बोरसाद नगर में डकैती से रक्षा के बदले पुलिस द्वारा वयस्क व्यक्तियों पर लगाए गए ’व्यक्ति कर’ के भुगतान के विरूद्ध किया गया। अपने स्वरूप में गांधीवादी प्रतीत होने वाला यह आंदोलन सफल रहा। अत्यधिक सामाजिक दबाव के परिणामस्वरूप सरकार द्वारा 1923 ई0 में यह कर समाप्त कर दिया गया।
वायकूम सत्याग्रह
टी0 के0 माधवन, के.के. केलप्पन तथा के.पी. केशव मेनन के नेतृत्व में हुए इस आंदोलन का उद्देश्य श्रमिक निम्न जातियों (एझवाओं) एवं अछूतों द्वारा गाँधीवादी तरीके से त्रावणकोर के एक मंदिर के निकट की सड़कों के उपयोग के बारे अपने अधिकारों को प्राप्त करना था। गांधीजी द्वारा मार्च 1925 में वायकूम का दौरा किया गया। यह आंदोलन सरकार द्वारा (20 माह पश्चात्) अलग से सड़क बनाने के उपरांत समाप्त हो गया। यह मंदिर-प्रवेश संबंधी पहला आंदोलन था।
नागपुर झंडा सत्याग्रह
1923 ई0 में सरकार द्वारा नागपुर में कांग्रेस द्वारा अपने ध्वज के प्रयोग पर प्रतिबंध लगाए जाने वाले एक स्थानीय आदेश के विरोध में यह सत्याग्रह शुरू हुआ। गुजरात से आंदोलनकारियों के दस्ते नागपुर भेजे गए ताकि सरकार समझौते के लिए बाध्य हो सके।
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