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जलालुद्दीन फिरोज खिलजीजलालुद्दीन फिरोज खिलजी
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जलालुद्दीन फिरोज खिलजी (1290-96 ई.) खिलजी वंश Jalaluddin firuz Khilji in hindi -इस विषय में पर्याप्त विवाद है कि खिलजी कौन थे? फखरुद्दीन ने उन्हें तुर्क की 64 जातियों में से एक बताया है. विश्वास किया जाता है कि भारत में आने से पूर्व यह जाति अफगानिस्तान में हेलमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों के उन भागों में रहती थी जिसे खिलजी के नाम से जाना जाता था.
सम्भवतः इसीलिए इस जाति का नाम खिलजी पड़ा. मामलूक वंश के अन्तिम शासक शम्सुद्दीन की हत्या करके जलालुद्दीन फिरोज खिलजी दिल्ली का सुल्तना बना. डा. आर. पी. त्रिपाठी ने इस घटना को ‘खिलजी क्रान्ति’ बताया है. इस वंश के काल में महत्वपूर्ण घटना सल्तनत का दक्षिण में विस्तार तथा तुर्की अमीरों के प्रभाव में कमी है.
खल्जी (खिलजी) शासन
कुछ इतिहासकार खल्जी को अफगान मानते हैं किन्तु अधिकांश इतिहासकारों का मानना है कि खिलजी 64 तुर्क जातियों में ही एक थे, किन्तु ये विशेषाधिकार विहीन वर्ग थे और इलवरी वंश के नस्लवादी नीतियों का शिकार इन्हें बनना पड़ा था। खिलजी वंश की स्थापना का अर्थ था, इलवरी वंश के एकाधिकार का अंत। इसलिए ये इतिहास में खिलजी क्रांति के नाम से जाना जाता है। कुछ इतिहासकारों के अनुसार खिलजी कबीला हेतमन्द नदी के तटीय क्षेत्रों में उन भागों में रहता था जिन्हें खिलजी (खलजी) के नाम से जाना जाता था।
जलालुद्दीन फिरोज़ खल्जी (1290-96 ई.)
यह समाना का गवर्नर रहा था और कैकुबाद ने इसे शाइस्ता खां की उपाधि दी थी। वह प्रथम सुल्तान था जिसने कहा कि शासन का आधार शासितों की इच्छा होनी चाहिये। उसकी आंतरिक नीति नरम थी और उसने शासक बनने के बाद बलबन के संबंधियों को उनके पद से नहीं हटाया। बलबन का एक संबंधी मलिक छज्जु अवध एवं मानिकपुर का गवर्नर बना रहा। इसी तरह फखरूद्दीन भी दिल्ली का कोतवाल बना रहा। शासक बनने के बाद उसने बलबन के सिंहासन पर भी बैठना अस्वीकार कर दिया और दिल्ली में किलखोरी को अपनी राजधानी बनाया। उसकी नरम नीति का सिर्फ एक अपवाद है जब उसने सिदीमौला नामक एक दरवेश को फाँसी दी थी।
दिल्ली के लोगों ने पहले नये खल्जी शासक जलालुद्दीन फिराज का स्वागत नहीं किया, क्योंकि वे उसे अफगान वंश का समझते थे। पर स्वर्गीय मेजर रैवर्टी ने यह सिद्ध करने का प्रयत्न किया की खल्जियों को अफगान या पठान वर्ग में नहीं रखा जा सकता था और उन्हें वे तुर्की उद्भव का बतलाते हैं। परन्तु तत्कालीन इतिहासकार जियूद्दीन बर्नी का विचार है कि जलालुद्दीन तुर्कों से भिन्न जाति का था। उसका यह भी कहना है कि कैकुबाद की मृत्यु के बाद तुर्कों ने साम्राज्य खो दिया। कुछ आधुनिक लेखक यह सुझाव रखते थे हैं कि खल्जी मूलत: तुर्की उद्भव के थे, परन्तु अफगानिस्तान में लम्बी अवधि तक के कारण उन्होंने अफगानों के गुणों को अपना लिया था तथा उनमें और तुर्कों में तनिक भी स्नेह न था। जो कुछ भी हो, उन्होंने अपनी शक्ति स्थापित में तत्कालीन राजनैतिक अव्यवस्था से लाभ उठाया।
दिल्ली के सरदार एवं नागरिक, आरम्भ में जलालुद्दीन को उतना पसन्द नहीं थे। अत: उसे किलोखरी को राजधानी बनाना पड़ा। पर, जैसा कि बरनी लिखता है, उसके चरित्र की श्रेष्ठता, उसके न्याय, उदारता एवं अनुराग से धीरे-धीरे लोगों की नाराजगी दूर हो गयी तथा भूमि पाने की आशा से उसके सरदारों की श्रद्धा, रोष और अनिच्छा पूर्वक ही सही, बढ़ने लगी।
नया सुल्तान गद्दी पर बैठने के समय 70 वर्ष का बूढ़ा आदमी था। वह परलोक की तैयारियों में व्यस्त था तथा वैसे संकटमय काल में अपनी शक्ति धारण करने में काफी सुस्त और कमजोर सिद्ध हुआ। रक्तपात एवं अत्याचार से रहित शासन की प्रवृत्ति के कारण उसने विद्रोहियों तथा अन्य अपराधियों के प्रति अत्यंत अनुचित दयालुता प्रदर्शित की। जब उसके शासन-काल के द्वितीय वर्ष में बलबल के एक भतीजे तथा कदा के जागीरदारमालिक छज्जू ने बहुत से सरदारों की मदद से उसके खिलाफ विद्रोह कर दिया, तब उसने अनुचित उदारता के कारण, विद्रोहियों को क्षमा कर दिया।
सुल्तान की शान्तिमय प्रवृत्ति एवं दयालुता के स्वाभाविक परिणामस्वरूप सरदारों के षडयंत्र पुनः आरम्भ हो गये तथा दिल्ली के राजसिंहासन की सत्ता का आदर होना बन्द हो गया।
ऐसा शासक विजय की प्रबल नीति का अनुसरण नहीं कर सकता था। इस कारण रणथम्भोर के विरुद्ध उसका आक्रमण असफल रहा। सुल्तान दुर्ग पर अधिकार किये बिना ही वहाँ से हट चला, क्योंकि उसका विश्वास था कि- बिना बहुत-से-मुसलमानों की जानों की बलि दिये, यह सम्पन्न नहीं हो सकता था। परन्तु उसे मंगोलों के एक दल के विरुद्ध अधिक सफलता प्राप्त हुई। उनकी संख्या डेढ़ लाख के लगभग थी तथा उन्होंने 1292 ई. में हलाकू (हुला) के एक पौत्र के अधीन भारत पर आक्रमण किया था। सुल्तान की सेना से बुरी तरह परास्त हो आक्रमणकारियों ने सुलह कर ली। मंगोल सेना को भारत से लौटने की आज्ञा मिल गयी, किन्तु चंगेज के एक वंशज उलगू तथा अन्य बहुतेरों (लगभग 4,000 मंगोलो) ने इस्लाम धर्म स्वीकार कर लिया। वे दिल्ली के निकट बस गये तथा नव मुस्लिम (नये मुसलमान) कहलाये। यह एक अनुचित छूट थी जिससे आगे चल कर कष्ट हुआ। वे दिल्ली सरकार के उत्पाती पड़ोसी निकले और उसे बड़ी परेशानी में डाला। ऐसे शान्तिप्रिय सुल्तान की भी अपनी शैय्या पर स्वाभाविक मृत्यु नहीं हुई। यह भाग्य की विचित्र लीला थी कि उसके महत्त्वाकांक्षी भतीजे ने उसे 1296 ई. में मार डाला।
जलालुद्दीन खिलजी का इतिहास |Jalaluddin Khilji History in Hindi
- 1290 में शम्सुद्दीन कैमुर्स जो गुलाम वंश का अंतिम शासक था उसको मार कर जलालुद्दीन खिलजी ने खिलजी वंश की स्थापना की इसे खिलजी क्रांति भी कहा जाता है
- खिलजी कौन थे
- भारत में आने से पूर्व यह जाति अफगानिस्तान के उन भागों में निवास करती थी जिसे खिलजी कहा जाता है, इसलिए ये लोग खिलजी कहलाये
- जलालुद्दीन फिरोज खिलजी ने 70 वर्ष की उम्र में 13 जून 1290 ई0 को दिल्ली की राज गद्दी ग्रहण की सुल्तान बनने से पहले ये बुलंदशहर का इक्तादार था
- जलालुद्दीन खिलजी का राज्याभिषेक कैकुबाद द्वारा बनबाये गये किलोखरी के महल में हुआ इसने अपनी राजधानी किलोखरी को बनाया
- जलालुद्दीन खिलजी दिल्ली सल्तनत का पहला शासक था ,जिसने अपने विचारों को स्पष्ट रुप से सामने रखा कि राज्य का आधार प्रजा का समर्थन होना चाहिए खिलजी की नीति दूसरों को प्रसन्न रखना थी
- जलालुद्दीन खिलजी पहला ऐसा शासक था जिसने विरोधियों को संतुष्ट करने का प्रयास किया जलालुद्दीन खिलजी उदार शासक था वह हिंदुओ के प्रति सहिष्णु था
- इसने अपने एक विरोधी मलिक छ्ज्जु जिसने कडा में विद्रोह कर दिया व स्वयं को वहाँ का सुल्तान घोषित कर दिया था जलालुद्दीन ने इसे हराया किन्तु उसे माफ कर दिया
- जलालुद्दीन खिलजी ने सीदी मौला जो ईरान से आया हुआ फकीर था इसने उसके खिलाफ षड्यंत्र रचा और उसे हाथी पैरों के नीचे कुचलबा दिया
- जलालुद्दीन खिलजी के काल में चंगेज खाँ के नाती उलूग खाँ ने अपने 4,000 मंगोल समर्थको के साथ इस्लाम धर्म ग्रहण किया व उसने मंगोलो को पराजित किया उसके शासन काल में मंगोल दिल्ली मे बसे जिन्हें नवीन मुसलमान कहा गया
- फिरोज खिलजी ने अपनी पुत्री की शादी उलूग खाँ से कर दी तथा नवीन मुसलमानो के रहने के लिए मुगलपुर नामक बस्ती बसाई
- जलालुद्दीन खिलजी के समय में उसके भतीजे अलाउद्दीन खिलजी ने देवगिरी के राजा रामचंद्र को पराजित किया रामचंद्र ने अपनी एक पुत्री की शादी अलाउद्दीन से की
- जलालुद्दीन के काल में ही मुसलमानों का दक्षिण भारत(देवगिरी) अलाउद्दीन के नेतृत्व में आक्रमण हुआ
- 1296 ई0 में अलाउद्दीन खिलजी के इशारे पर इख्तियारुद्दीन हुद ने जलालुद्दीन का सर काट कर उसकी हत्या कर दी
- जलालुद्दीन के दरबार में अमीर खुसरो तथा हसन देहलवी जैसे प्रख्यात व्यक्ति रहते थे.
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