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पानीपत की लड़ाई – Panipat War For IAS,UPSC,CGL,

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पानीपत की लड़ाई

पानीपत की लड़ाई

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पानीपत की लड़ाई – Panipat War

इब्राहीम लोदी के शासन में लोदी सम्राज्य अस्थिरता एवं अराजकता के दौर से गुजर रहा था और आपसी मतभेदों एवं निजी स्वार्थों के चलते दिल्ली की सत्ता निरन्तर प्रभावहीन होती चली जा रही थी। इन विपरीत परिस्थितियों इब्राहीम लोदी के कई सरदार और उसके कुछ अपने सम्बधि उसके बर्ताव की वजह से उससे नाराज थे, उसी समय इब्राहीम के असंतुष्ट सरदारों में पंजाब का शासक ‘दौलत ख़ाँ लोदी’ एवं इब्राहीम लोदी के चाचा ‘आलम ख़ाँ’ ने काबुल के तैमूर वंशी शासक बाबर को भारत पर आक्रमण के लिए निमंत्रण दिया।

बाबर ने यह निमंत्रण स्वीकार कर लिया और वह भारत आया। जनवरी, 1526 में अपनी सेना सहित दिल्ली पर धावा बोलने के लिए उसने अपने कदम आगे बढ़ा दिया दिए। इसकी खबर जब इब्राहीम लोदी को मिली तो उसने बाबर को रोकने के लिए कई कोशिश किया लेकिन सभी बिफल रहा। युद्ध को जीतने के उद्देश्य से बाबर पूरी योजना के साथ आगे बढते रहा और इधर से इब्राहीम लोदी भी सेना लेकर निकल पड़ा, दोनों सेना पानीपत के मैदान में 21 अप्रैल, 1526 के दिन आमने-सामने आयी।

बाबर ने तुलगमा युद्ध पद्धति उजबेकों से ग्रहण की थी। पानीपत के युद्ध में ही बाबर ने अपने दो प्रसिद्ध निशानेबाज़ ‘उस्ताद अली’ एवं ‘मुस्तफ़ा’ की सेवाएँ ली। इस युद्ध में पहली बार बारूद, आग्नेयास्त्रों और मैदानी तोपखाने को उपयोग किया गया। साथ ही इस युद्ध में बाबर ने पहली बार प्रसिद्ध ‘तुलगमा युद्ध नीति’ का प्रयोग किया था और इसी युद्ध में बाबर ने तोपों को सजाने में ‘उस्मानी विधि’ (रूमी विधि) का प्रयोग किया था।

बाबर के सूझबूझ, कुशल नेतृत्व और आग्नेयास्त्रों की ताकत आदि के सामने इब्राहिम लोदी बेहद कमजोर थे। इब्राहिम लोदी की सेना के पास प्रमुख हथियार तलवार, भाला, लाठी, कुल्हाड़ी व धनुष-बाण आदि थे। हालांकि उनके पास विस्फोटक हथियार भी थे, लेकिन, तोपों के सामने उनका कोई मुकाबला ही नहीं था।

इसके साथ ही गंभीर स्थिति यह थी कि सुल्तान की सेना में एकजुटता का अभाव और इब्राहिम लोदी की अदूरदर्शिता का अवगुण आड़े आ रहा था। इस भीषण युद्ध में सुल्तान इब्राहिम लोदी व उसकी सेना मृत्यु को प्राप्त हुई और बाबर के हिस्से में ऐतिहासिक जीत दर्ज हुई। और लोदी वंश के स्थान पर मुगल वंश की स्थापना हुई।

इब्राहिम की मृत्यु के बाद, बाबर ने इब्राहीम के क्षेत्र में खुद को सम्राट का नाम दिया। इब्राहिम की मृत्यु ने लोदी राजवंश के अंत में चिह्नित किया और भारत में मुगल साम्राज्य की स्थापना का नेतृत्व किया। जिसने लगभग 500 साल तक भारत पर राज किया।

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