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बसीन की संधि का महत्त्व, 1802 का भारतीय इतिहास में महत्त्व

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बसीन की संधि का महत्त्व

बसीन की संधि का महत्त्व

जरुर पढ़े… 

बसीन की संधि का मुख्य कारण मराठों का आपसी संघर्ष था। मराठे आपस में लङ रहे थे,जिसका फायदा अंग्रेजों ने उठाया।

बाजीराव II और अंग्रेजों के बीच समझौता

बेसिन की संधि (Treaty of Bassein) के अनुसार दोनों पक्षों ने संकट के समय एक-दूसरे का साथ देने का वचन दिया. पेशवा बाजीराव द्वितीय को अंग्रेजों ने 6000 सैनिक तथा तोपखाना दिए और बदले में पेशवा ने 26 लाख रु. दिए. पेशवा ने यह भी वचन दिया की बिना अंग्रेजों की स्वीकृति के वह किसी यूरोपियन को अपने यहाँ नौकरी नहीं देगा और किसी दूसरे राज्य के साथ भी युद्ध संधि या पत्र-व्यवहार नहीं करेगा. इस प्रकार बेसिन की संधि का भारतीय इतहास में एक  विशिष्ट महत्त्व है क्योंकि इसके द्वारा मराठों ने अपने सम्मान और स्वतंत्रता के अंग्रेजों के हाथों बेच दिया जिससे महाराष्ट्र की प्रतिष्ठा को गहरा धक्का लगा. दूसरी ओर अंग्रेजों को पश्चिम भारत में पैर जमाने का एक अच्छा मौका मिल गया.

मराठों में आपसी संघर्ष – पेशवा बाजीराव द्वितीय सर्वथा अयोग्य था। 13 मार्च,1800 को नाना फङनवीस की मृत्यु हो गई। जब तक नाना फङनवीस जीवित रहा, उसने मराठों में एकता बनाये रखी।किन्तु उसकी मृत्यु के बाद मराठा सरदारों में आपसी संघर्ष प्रारंभ हो गये। दो मराठा सरदारों-ग्वालियर का शासक दौलतराव सिंधिया तथा इंदौर का शासक जसवंतराव होल्कर के बीच इस बात पर प्रतिस्पर्द्धा उत्पन्न हो गयी कि पेशवा पर किसका प्रभाव रहे। पेशवा,बाजीराव द्वितीय निर्बल व्यक्ति था, अतः वह भी किसी शक्तिशाली मराठा सरदार का संरक्षण चाहता था।अतः वह दौलतराव सिंधिया के संरक्षण में चला गया।अब बाजीराव व सिंधिया ने होल्कर के विरुद्ध संयुक्त मोर्चा बना लिया। होल्कर के लिये यह स्थिति असहनीय थी। फसलस्वरूप  1802 के प्रारंभ में सिंधिया व होल्कर के बीच युद्ध छिङ गया। जब होल्कर मालवा में सिंधिया की सेना के साथ युद्ध में व्यस्त था, पूना में पेशवा ने होल्कर के भाई बिट्ठूजी की हत्या करवा दी।अतः होल्कर अपने भाई का बदला लेने पूना की ओर चल पङा। पूना के पास होल्कर ने पेशवा और सिंधिया की संयुक्त सेना को पराजित किया और एक विजेता की भाँति पूना में प्रवेश किया। होल्कर ने राघोबा के दत्तक पुत्र अमृतराव के बेटे विनायकराव को पेशवा घोषित किया। पेशवा भयभीत हो गया तथा भागकर बसीन (बंबई के पास अंग्रेजों की बस्ती) चला गया। बसीन में उसने वेलेजली से प्रार्थना की कि वह उसे पुनः पेशवा बनाने में सहायता दे। वेलेजली भारत में कंपनी की सर्वोपरि सत्ता स्थापित करना चाहता था। मैसूर की शक्ति नष्ट करने के बाद अब मराठे ही उसके एकमात्र प्रतिद्वन्द्वी रह गये थे। अतः वह मराठा राजनीति में हस्तक्षेप करने का अवसर ढूँढ रहा था। पेशवा द्वारा प्रार्थना करने पर वेलेजली को अवसर मिल गया। वेलेजली ने पेशवा के समक्ष शर्त रखी कि यदि वह सहायक संधि स्वीकार करले तो उसे पुनः पेशवा बनाने में सहायता दे सकता है। पेशवा ने वेलेजली की शर्त को स्वीकार कर लिया और 31 दिसंबर,1802 को पेशवा और कंपनी के बीच बसीन की संधि हो गयी।

बसीन की संधि की शर्तें निम्नलिखित हैं-

  • पेशवा अपने राज्य में 6,000 अंग्रेज सैनिकों की एक सेना रखेगा तथा इस सेना के खर्चे के लिए 26 लाख  रुपये वार्षिक आय का भू-भाग अंग्रेजों को देगा।
  • पेशवा ने अंग्रेजी संरक्षण स्वीकार कर भारतीय तथा अंग्रेज पदातियों की सेना को पूना में रखना स्वीकार किया।
  • पेशवा बिना अंग्रेजों की अनुमति के मराठा राज्य में किसी अन्य यूरोपियन को नियुक्ति नहीं देगा और न अपने राज्य में रहने की अनुमति देगा।
  • पेशवा ने सूरत नगर कंपनी को दे दिया।
  • पेशवा ने निजाम से चौथ प्राप्त करने का अधिकार छोङ दिया और अपने विदेशी मामले कंपनी के अधीन कर दिये।
  • पेशवा के जो निजाम और गायकवाह के साथ झगङे हैं, उन झगङों के पंच निपटारे का कार्य कंपनी को सौंप दिया ।
  • भविष्य में किसी राज्य के साथ युद्ध,संधि  अथवा पत्र-व्यवहार बिना अंग्रेजों की अनुमति के नहीं करेगा।

बसीन की संधि का महत्त्व-

बसीन की संधि भारतीय इतिहास की एक अत्यंत ही महत्त्वपूर्ण घटना है। इस संधि के द्वारा पेशवा ने मराठों के सम्मान एवं स्वतंत्रता को अंग्रेजों के हाथों में बेच दिया था। जिससे मराठा शक्ति की प्रतिष्ठा को भारी धक्का लगा। किन्तु अंग्रेजों के लिए यह संधि अत्यधिक महत्त्वपूर्ण सिद्ध हुई। सिडनी ओवन ने लिखा है कि इस संधि के बाद संपूर्ण भारत में कंपनी राज्य स्थापित हो गया। वास्तव में इस संधि का महत्त्व आवश्यकता से अधिक बताया गया है। इस संधि का सबसे बङा दोष यह था कि अब अंग्रेजों का मराठों से युद्ध प्रायः निश्चित हो गया। क्योंकि वेलेजली ने मराठों के आंतरिक झगङों को तय करने का उत्तरदायित्व अपने ऊपर ले लिया था। वेलेजली ने कहा था कि इससे शांति तथा व्यवस्था बनी रहेगी, किन्तु इसके परिणामस्वरूप सबसे व्यापक युद्ध हुआ। वेलेजली ने संधि का औचित्य बताते हुए कहा था कि अंग्रेजों को मराठों के आक्रमण का भय था, किन्तु जब मराठे स्वयं अपने पारस्परिक झगङों में उलझे हुए थे, तब फिर अंग्रेजों पर आक्रमण करने का प्रश्न ही कहाँ उत्पन्न होता है। वस्तुतः वेलेजली भारत में ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार पर तुला हुआ था और वह मराठों को ऐसी संधि में उलझा देना चाहता था , जिससे कि ब्रिटिश साम्राज्य का विस्तार निर्बाध रूप से होता रहे। अतः बसीन की संधि ने ब्रिटिश साम्राज्य के विस्तार के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करदी थी।

हालाँकि यह संधि सभी मराठी सरदारों को मंजूर नहीं था इसलिए बाद में जाकर द्वितीय आंग्ल-मराठा युद्ध हुआ.

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