
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853)
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853)– हेलो दोस्तों आप सब छात्रों के समक्ष “ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853) के बारे में विस्तार बारे में बतायेंगे. जो छात्र SSC, PCS, IAS, UPSC, UPPPCS, Civil Services या अन्य Competitive Exams की तैयारी कर रहे है है उनके लिए ये ‘ ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853) के बारे में पढना काफी लाभदायक साबित होगा.
Regulating Act 1773 History in Hindi
ब्रिटिश ईस्ट इंडिया कम्पनी के अंतर्गत भारत (1773-1853)
- रेग्युलेटिंग एक्ट-1773
- पिट्स इंडिया एक्ट-1784
- चार्टर एक्ट-1793
- चार्टर एक्ट-1813
- चार्टर एक्ट-1833
- चार्टर एक्ट-1853
रेग्युलेटिंग एक्ट, 1773
- तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री लॉर्ड नॉर्थ द्वारा गोपनीय समिति की रिपोर्ट पर 1773 में ब्रिटिश संसद द्वारा यह एक्ट पारित किया गया। इसका मुख्य उद्देश्य कंपनी में व्याप्त भ्रष्टाचार एवं कुशासन को दूर करना था।
- रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत निदेशकों की पदावधि 1 वर्ष से बढ़ाकर 4 वर्ष तक कर दी गई।
- बंगाल के गवर्नर को अब अंग्रेजी क्षेत्रों का गवर्नर-जनरल कहा गया और उसके परामर्श के लिए 4 सदस्यों की एक कार्यकारिणी समिति बनाई गई जिसके निर्णय बहुमत के अनुसार होंगे। इनका कार्यकाल 5 वर्ष रखा गया। इन सदस्यों को कोर्ट ऑफ डायरेक्टर्स (CoD) की संस्तुति पर केवल ब्रिटिश सम्राट द्वारा हटाया जा सकता था।
- बंगाल का प्रथम गवर्नर जनरल वारेन हेस्टिंग्स को बनाया गया। उसकी कार्यकारिणी के 4 अन्य सदस्य (1. फिलिप फ्रांसिस, 2. क्लेवरिंग, 3. मानसन 4. वारवेल) थे। इसमें केवल वारवेल ही हेस्टिंग्स का समर्थक था, जबकि फ्रांसिस उसका विरोधी था। वारवेल की नियुक्ति भारत में हुई थी, शेष 3 इंग्लैंड से आए थे।
- रेग्युलेटिंग एक्ट के अंतर्गत 1774 ईस्वी में कलकत्ता में एक सुप्रीम कोर्ट की स्थापना की गई। इसमें 1 मुख्य एवं 3 अन्य न्यायाधीशों की नियुक्ति की गई।
मुख्य न्यायाधीश के पद पर सर एलिजा इम्पे की नियुक्ति की गई। - अन्य 3 न्यायाधीश (1.चैम्बर्स, 2. लिमैस्टर, 3. हाइड) थे। न्यायाधीशों की नियुक्ति ब्रिटिश सम्राट करता था यह एक अभिलेख न्यायालय था।
- कोर्ट ऑफ प्रोप्राइटर्स में वोट देने का अधिकार उन लोगों को दिया गया जो चुनाव से कम से कम 1 वर्ष पूर्व 1000 पौण्ड के शेयर के स्वामी रहे हों। इसके पूर्व यह राशि 500 पौण्ड की थी।
संशोधन अधिनियम, 1781 (एक्ट ऑफ सेटलमेन्ट)
- ब्रिटिश संसद ने 1781 ईस्वी में दो समितियां (प्रवर समिति और गुप्त समिति) नियुक्त की थी। एडमंड बर्क की अध्यक्षता में प्रवर समिति को भारत में न्याय व्यवस्था, उच्चतम न्यायालय तथा सर्वोच्च परिषद् के संबंधों की जांच करने का कार्य सौंपा गया।
- समिति ने उसी वर्ष अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत कर दिया जिसके फलस्वरूप 1781 ईस्वी का संशोधन अधिनियम पारित किया गया इस अधिनियम को एक्ट ऑफ सेटलमेंट, 1781 और बंगाल जूडिकेचर एक्ट, 1781 के नाम से भी जाना जाता है।
पिट्स इंडिया एक्ट, 1784
- इस अधिनियम के द्वारा 6 कमिश्नरों का बोर्ड गठित किया गया जिसे ‘बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल‘ कहा गया। इसमें एक चांसलर ऑफ एक्सचेकर, एक राज्य सचिव तथा उसके द्वारा नियुक्त किये गये 4 व्यक्ति प्रिवी कौंसिल के सदस्य होते थे। सभी सैनिक, असैनिक तथा राजस्व सम्बन्धी मामलों को इस नियंत्रण बोर्ड के अधीन कर दिया गया।
1786 का एक्ट
- कार्नवालिस गवर्नर जनरल तथा मुख्य सेनापति दोनों की शक्तियां लेना चाहता था। इस अधिनियम के अनुसार इसे स्वीकार कर लिया गया तथा विशेष अवस्था में अपनी परिषद् के निर्णयों को रद्द करने तथा अपने निर्णय को लागू करने का अधिकार भी गवर्नर जनरल को दे दिया गया।
1793 का चार्टर एक्ट
(कार्नवालिस को खुश करने वाला एक्ट)
- कम्पनी के अधिकारों को 20 वर्ष के लिए बढ़ा दिया गया। परिषद् के निर्णयों को रद्द करने का जो अधिकार कार्नवालिस को दिया गया। कार्नवालिस को खुश करने वाला एक्ट था बोर्ड ऑफ कन्ट्रोल के अधिकारियों का वेतन भारतीय कोष से मिलने लगा।
1813 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी का अधिकार 20 वर्ष के लिए पुन: बढ़ा दिया गया।
- कम्पनी का भारतीय व्यापार पर एकाधिकार समाप्त हो गया यद्यपि चाय और चीन के व्यापार पर एकाधिकार बना रहा। व्यापारिक लेन-देन तथा राजस्व खाते अब भिन्न-भिन्न रखने होंगे।
- कम्पनी को भारत में शिक्षा पर 1 लाख रुपया व्यय करने का प्रावधान था।
- ईसाई मिशनरियों को भारत में प्रवेश करने की छूट मिल गई।
1833 का चार्टर एक्ट
- इस एक्ट के द्वारा भारतीय प्रशासन का केंद्रीयकरण किया गया। बंगाल का गवर्नर अब भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया।
- लॉर्ड विलियम बैंटिक भारत के पहले गवर्नर-जनरल बने।
- 1833 के अधिनियम के मैकाले एवं जेम्स मिल का प्रभाव स्पष्ट रूप से दिखाई पड़ता है।
- इस एक्ट के द्वारा गवर्नर-जनरल की सरकार भारत सरकार और उसकी परिषद भारत परिषद कहलाने लगी।
- भारतीय कानूनों को लिपिबद्ध तथा सुधार के उद्देश्य से एक विधि आयोग का गठन किया गया।
अधिनियम मुख्य विशेषतायें
- कम्पनी का अधिकार 20 वर्ष के लिए पुन: बढ़ा दिया गया।
- कम्पनी का व्यापारिक अधिकार चाय तथा चीन से भी पूर्णत: समाप्त कर दिया गया।
- भारत के प्रशासन का केन्द्रीकरण कर दिया गया। बंगाल का गवर्नर जनरल भारत का गवर्नर जनरल बना दिया गया बम्बई, मद्रास, बंगाल तथा अन्य प्रदेश गवर्नर जनरल के नियंत्रण में आ गए।
- कानून बनाने की शक्ति का भी केन्द्रीकरण कर दिया गया। अब गवर्नर जनरल और उसकी कार्यकारिणी को भारत के लिए कानून बनाने का अधिकार दिया गया और मद्रास तथा बंबई की परिषदों की कानून बनाने की शक्ति समाप्त कर दी गई।
- इस अधिनियम द्वारा विधान बनाने के लिए गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी में एक अतिरिक्त कानूनी सदस्य को चौथे सदस्य के रूप में शामिल किया गया। उसे केवल परिषदों की बैठकों में भाग लेने का अधिकार था, परन्तु मत देने का अधिकार नहीं था।
- भारतीय कानून को संचित व संहिताबद्ध करने तथा सुधारने की भावना से एक विधि आयोग की नियुक्ति की गई।
- इस अधिनियम की सबसे महत्वपूर्ण धारा 87 थी जिसके द्वारा जाति, वर्ण के आधार पर सरकारी चयन में भेदभाव समाप्त कर दिया गया।
- 1833 के एक्ट के अधीन भारत सरकार को दासों की अवस्था सुधारने और अंतत: दासता समाप्त करने की आज्ञा दी गई।
1853 का चार्टर एक्ट
- कम्पनी को भारतीय प्रदेश तथा राजस्व क्राउन की ओर से न्यास के रूप में रखना था। इस प्रकार ब्रिटिश क्राउन जब चाहे, कम्पनी से प्रशासन अपने हाथ में ले सकता था।
- इस अधिनियम में यह व्यवस्था की गई कि नियंत्रण बोर्ड और उसके अन्य पदाधिकारियों का वेतन सरकार निश्चित करेगी, परन्तु धन कंपनी देगी। डाइरेक्टरों की संख्या 24 से घटाकर 18 कर दी गई; उसमें 6 क्राउन द्वारा मनोनीत किये जाने थे। नियुक्तियां अब एक प्रतियोगी परीक्षा द्वारा की जानी थी। जिसमें किसी प्रकार का भेदभाव नहीं किया जायेगा।
- 1854 ई. में इस योजना को लागू करने के लिए लॉर्ड मैकाले की अध्यक्षता में एक समिति की नियुक्ति की गई। विधि सदस्य को गवर्नर जनरल की कार्यकारिणी का पूर्ण सदस्य बना दिया गया और जब यह परिषद कानून बनाने के लिए बनायी तो इसमें 6 अतिरिक्त सदस्यों की व्यवस्था की गई।
- गवर्नर जनरल को इसके अतिरिक्त दो अन्य असैनिक पदाधिकारी नियुक्त करने का भी अधिकार था। इस तरह सर्वप्रथम एक विधान परिषद् के गठन की व्यवस्था की गई जिसमें अधिकतम 12 सदस्य थे।
- बंगाल के लिए एक उप-राज्यपाल की व्यवस्था की गई। इसी अधिनियम के अंतर्गत 1859 में पंजाब में एक लेफ्टिनेंट जनरल की व्यवस्था की गई थी।
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