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भारत में पंचवर्षीय योजना के सामान्य लक्ष्य/उद्देश्य | Common Objective of Five Year Plan

भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य

योजना आयोग:

  • भारत में 15 मार्च 1950 में योजना आयोग का गठन हुआ |
  • भारत का प्रधानमंत्री इसके अध्यक्ष होते थे |
  • भारत सरकार किस तरह काम करे उस लिए Planning Commission बनाया गया था और यह एक सलाहकारी निकाय था जिसका संविधान में कही उल्लेख्य नहीं है |
  • योजना आयोग ने भारत के विकास के लिए कई पंचवर्षीय योजना बनाई सबसे पहली पंचवर्षीय योजना 1 अप्रैल 1951 से प्रारम्भ हुवी थी |

NDC(राष्ट्रीय विकास परिषद्) :

6 अगस्त 1952 को की गई | इसे सुपर केबिनेट भी कहा जाता है

भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य

 भारत में पंचवर्षीय योजनाओं के उद्देश्य निम्नवत् रहे हैं-

(1) उपलब्ध साधनों का सर्वोत्तम प्रयोग- भारत के सीमित उपलब्ध साधनों का पूर्ण दोहन नहीं हो पाया है; अत: उपलब्ध साधनों का अधिकतम और श्रेष्ठतम उपयोग योजनाबद्ध दोहन का प्रमुख पहलू है।

(2) राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करना- देश की गरीबी को दूर करने के लिए प्रत्येक योजना में राष्ट्रीय आय तथा प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करने के प्रयास किये जा रहे हैं।

(3) जनसंख्या-वृद्धि पर नियन्त्रण- देश में तीव्र गति से बढ़ती जनसंख्या देश के विकास में सबसे बड़ी बाधा है। इसलिए प्रत्येक योजना में जनसंख्या वृद्धि को रोकने का प्रयत्न किया गया है।

(4) जनता के जीवन- स्तर में सुधार करना-राष्ट्रीय आय और प्रति व्यक्ति आय में वृद्धि करके तथा जन्म-दर में कमी करके जीवन-स्तर को ऊँचा उठाना योजनाओं का उद्देश्य रहा है।

(5) समाजवादी समाज की स्थापना- भारत की पंचवर्षीय योजनाओं का उद्देश्य समाजवादी समाज की स्थापना’ रहा है; अर्थात् इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि आर्थिक विकास का लाभ कुछ लोगों को न मिलकर सम्पूर्ण समाज के विशेष रूप से पिछड़े और निर्धन लोगों को अधिक मिल सके।

(6) सार्वजनिक क्षेत्र का विस्तार– भारत सरकार की नीति सार्वजनिक क्षेत्र के विस्तार की रही है। सरकारी क्षेत्र में इस्पात, रसायन, उर्वरक, तेल इत्यादि कारखानों की स्थापना, यातायात और संचार सेवाएँ, सिंचाई की सुविधा, सरकारी विपणन, बैंक व बीमा की सरकारी सेवाएँ इसी उद्देश्य को पूरा करने के लिए प्रदान की गयी हैं।

(7) रोजगार के अवसरों में वृद्धि करना— नियोजन काल में नये-नये उद्योगों की स्थापना, पुराने उद्योगों और कृषि का सुधार, सरकारी कारखानों की संख्या में वृद्धि, कुटीर उद्योगों का विस्तार आदि का उद्देश्य रोजगार की अधिकाधिक सुविधाएँ प्रदान करना रहा है, जिससे रोजगार के अवसरों में वृद्धि की जा सके तथा बढ़ती हुई बेरोजगारी कम हो सके।

(8) आर्थिक समानता लाना- योजनाओं में इस बात पर विशेष बल दिया गया है कि योजनाओं का लाभ समाज के पिछड़े और गरीब लोगों को अधिक-से-अधिक मिल सके। इससे आर्थिक असमानता दूर होगी; क्योंकि समाज के कमजोर वर्गों का कल्याण सरकार ही कर सकती है।

(9) जन-सुविधाओं का विस्तार- आर्थिक समानता लाने के लिए देश के पिछड़े हुए क्षेत्रों में, गाँवों में अनुसूचित जाति एवं जनजाति व पिछड़े वर्गों के लोगों के लिए विभिन्न योजनाओं के द्वारा अच्छा भोजन, वस्त्र, मकान, स्कूल, अस्पताल, बिजली, पक्की सड़कें इत्यादि जन-सुविधाओं को निरन्तर बढ़ाया जा रहा है।

(10) कल्याणकारी राज्य की स्थापना- देश की योजनाओं का उद्देश्य कल्याणकारी राज्य की स्थापना करना है। विशेषतः पाँचवीं और छठी योजना में जिस न्यूनतम आवश्यकता कार्यक्रम पर बल दिया गया था उसका उद्देश्य देश की जनता के कल्याण को सरकारी स्तर पर बढ़ाना है। इसमें आवश्यक वस्तुओं की वितरण-व्यवस्था को सुधारना, गरीबों को उचित मूल्य पर वस्तुएँ प्रदान करना, मूल्य तथा मजदूरी आय में सन्तुलन लाना, शिक्षा, स्वास्थ्य व पौष्टिक आहार, पीने के पानी व आवास, वृद्धावस्था व अन्य आपत्तियों के समय सहायता करना इत्यादि से जन-कल्याण में वृद्धि की जा रही है। यही कल्याणकारी राज्य का उद्देश्य होता है।

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