स्वतन्त्रता से पूर्व शिक्षा सम्बन्धित संक्षिप्त जानकारी
Brief Knowledge of Pre Independence Education
स्वतन्त्रता से पूर्व की संक्षिप्त जानकारी 17 वीं शताब्दी तक अनेक विदेशी व्यापारिक कम्पनियाँ भारत में प्रवेश कर चुकी थीं। उनमें ईस्ट इण्डिया कम्पनी (इंगलिश), डच ईस्ट इण्डिया कम्पनी तथा फ्रेन्च ईस्ट इण्डिया कम्पनी प्रमुख थीं, क्योंकि ये सभी कम्पनियाँ अपने व्यापारिक हितों की सुरक्षा में जुटी थी, अत: परस्पर ईर्ष्या, विद्वेष तथा संघर्ष का शिकार होने लगीं। इस प्रकार अंग्रेज, पुर्तगाली, डच तथा फ्रान्सीसी व्यापारी परस्पर अपने व्यापारिक क्षेत्रों के लिए परस्पर युद्ध करने लगे।
ईस्ट इण्डिया कम्पनी की प्रारम्भिक शिक्षा नीति
Early Educational Policy of East India Company
ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बढ़ते चरणों की रूपरेखा नीचे प्रस्तुत की जा रही है-
- सन् 1611-1613 : मछलीपट्टनम एवं सूरत में कारखानों की स्थापनाः शिक्षा का प्रसार, धर्म के उत्थान तथा अंग्रेज कर्मचारियों के लिए मात्र।
- सन् 1614 : कुछ भारतीयों को प्रोटेस्टेण्ट धर्म की दीक्षा हेतु इंग्लैण्ड भेजा।
- सन् 1659 आदेश-पत्र : इंग्लैण्ड से अंग्रेज मिशनरियों को भारत लाने की (DESPATCH) इच्छा प्रकट करना। किन्तु धार्मिक तटस्थता का व्यवहार।
- सन् 1698 आज्ञा-पत्र: ईस्ट इण्डिया कम्पनी के किलों, नगर-रक्षक (Charter) सेनाओं एवं कारखानों में विद्यालयों की स्थापना की गयी।
- सन् 1698 : दान आश्रित स्कूल (Charity School) की स्थापना। बच्चों की निःशुल्क शिक्षा का प्रबन्ध किया गया।
- सन् 1673 : मद्रास में प्रथम माध्यमिक स्कूल की स्थापना पादरी प्रिंगले (Pringley) के नेतृत्व में की गयी।
- सन् 1719 : बम्बई में पादरी रिचर्ड कॉबे (Rev. Rechard Cobbe) ने प्रोटेस्टेण्ट बालकों के लिए स्कूल की स्थापना की।
- सन् 1757 : प्लासी युद्ध विजय (अंग्रेजों की)।
- सन् 1765: सम्राट शाह आलम द्वारा अंग्रेज प्रभुसत्ता को स्वीकृति प्रदान करना। इन दोनों घटनाओं ने अंग्रेजों की सत्ता जड़ों को मजबूत कर दिया तथा उन्होंने शिक्षा के प्रभावी प्रयासों की रूपरेखा अपने हितों के अनुकूल बनाना प्रारम्भ किया।
- सन् 1773 : ‘रेग्यूलेटिंग एक्ट’ (Regulacting Act) लागू किया गया, जिसके अन्तर्गत कलकत्ता में एक सर्वोच्च न्यायालय की स्थापना की गयी।
- सन् 1780: वारेन हेस्टिंग्ज (Warren Hastings) ने बंगाल के गवर्नर होने के नाते ‘कलकत्ता मदरसा’ स्थापित किया, जो कि मुसलमानों को उच्च शिक्षा प्रदान करने का केन्द्र था।
- सन् 1781: ‘संशोधित कानून’ (Supplementary Act) के तहत भारतीय संस्कृति के अनुरूप न्याय व्यवस्था लागू की गयी।
- सन् 1791: बनारस के रेजीडेन्ट जोनाथन डंकन (Jonathan Duncan) ने बनारस संस्कृत कॉलेज की स्थापना की। यह राजनैतिक उद्देश्यों की मात्र पूरक संस्थाएँ थीं।
- सन् 1800: लार्ड वेलजली (Lord Wellesely) ने ‘फोर्ट विलियम कॉलेज’ की स्थापना कलकत्ता में की। इसका उद्देश्य ईस्ट इण्डिया कम्पनी हेतु सुयोग्य भारतीय कर्मचारियों की तीव्र माँग पूर्ति करना था।
अंग्रेज मिशनरियों के द्वारा शिक्षा के प्रारम्भिक प्रयास (योगदान)
Early Efforts (Contribution) of English Missionaries for Education
अन्य कार्य मिशनरियों द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में किये गये थे उनमें से प्रमुख कार्य इस प्रकार हैं-
- सन् 1729 : ऐंग्लिकन चेरिटेबिल स्कूल (Anglican Charitable School) की स्थापना। यह 1787 तक अनवरत रूप से चलता रहा तथा नि: शुल्क शिक्षा प्रदान करता रहा।
- सन् 1789 : ‘फ्री स्कूल सोसायटी’ द्वारा फ्री स्कूल की स्थापना। इसकी स्थापना डेनमार्क के व्यापारियों ने सीरामपोर (Serampore) में की थी।
- सन् 1817 : बेप्टिस्ट मिशनरियों द्वारा लगभग 115 विद्यालयों की स्थापना की गयी। इन मिशनरी गतिविधियों का नेतृत्त्व केरे, वार्ड तथा मार्शमैन (Carey, Ward and Marshman) द्वारा किया गया था। इसे ‘सीरामपोर ट्राओ’ (Serampore Trio) के नाम से जाना जाता है।
चार्ल्स ग्रान्ट के शैक्षिक प्रयास
Educational Efforts of Charles Grant
चार्ल्स ग्रान्ट ने अपने मन्तव्य को अपनी पुस्तक में इस प्रकार व्यक्तकिया-“अज्ञानता का विनाश करने का एक मात्र उपाय है, ज्ञान का प्रसार करना। हिन्दू तो इसलिए त्रुटि करते हैं, क्योंकि वे अविवकी हैं तथा कोई उन्हें इन त्रुटियों का आभास नहीं कराता। वे केवल हमारी शिक्षा एवं संस्कृति के द्वारा ही इन त्रुटियों को समझ पाने की योग्यता प्राप्त कर सकते हैं।” इस प्रकार भारत में शिक्षा के विदेशी पौधे को रोपने का कार्य इस चार्ल्स ग्रान्ट नामक व्यक्ति ने किया था। इसे “भारत में आधुनिक शिक्षा का जनक’ (Father of Modern Education in India) भी कहा जाता है। इतना ही नहीं उसका नाम शिक्षा के परिदृश्य पर उभर कर एकदम सामने आने का अन्य कारण था, लार्ड मिन्टों के द्वारा तीव्र दमनात्मक रवैये से परेशान मिशनरियों द्वारा लन्दन में चलाया गया आन्दोलन जिसकी अगुआई भी चार्ल्स ग्रान्ट ने ही की थी।
- 1793 का आज्ञापत्र (Charter of 1793)- ब्रिटिश संसद सदस्य विल्बरफोर्स (Wilburforce) ने चार्ल्स ग्रान्ट के विचारों से प्रभावित होकर जब ईस्ट इण्डिया कम्पनी का आज्ञापत्र 1793 में पुनर्णोधन (Renewal of Licence) के लिए ब्रिटिश संसद में पेश किया तो उन्होंने सर्वप्रथम भारतीयों की शिक्षा का दायित्त्व कम्पनी को सौंपा तथा इसको राजनैतिक एवं कानूनी स्वीकृति प्रदान की। उन्होंने पुनर्णोधन के समय शिक्षा सम्बन्धी धारा (Article Related with Education) को जोड़ दिया। यह निम्नलिखित रूप से थी- “ब्रिटिश व्यवस्थापकों का यह अनिवार्य कर्त्तव्य है कि वे समस्त उचित तथा विवेकपूर्ण साधनों द्वारा भारत में ब्रिटिश राज्य के हित एवं समृद्धि हेतु कार्य करें तथा इन उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए ऐसे साधनों को प्रयोग में लायें, जिससे भारतीयों में ज्ञान, धर्म तथा नैतिकता की उन्नति हो सके।”
- 1813 का आज्ञापत्र (Charter of 1813)- महारानी ऐलिजाबेथ से पूर्वी देशों से व्यापार अनुमति प्रपत्र को प्रत्येक 10 (दस) वर्ष बाद पुनर्शोधन (Renewal) हेतु ब्रिटिश पार्लियामेन्ट में भेजा जाता था। यह प्रक्रिया 31 दिसम्बर, 1600 से प्रारम्भ होकर ईस्ट इण्डिया कम्पनी के व्यापारिक प्रभुत्त्व के समाप्त होने तक लगातार चलती रही। 1813 में इसी अनुमति प्रपत्र (Charter) के पुनर्शोधन के समय एक और ऐतिहासिक घटना घटी। इस पुनर्योधन में ईस्ट इण्डिया कम्पनी पर सर्वप्रथम भारतीयों की शिक्षा का उत्तरदायित्त्व लाद दिया गया। जिसका उनके व्यापारिक हितों से कोई भी सीधा सम्बन्ध नहीं था। इस आज्ञापत्र में कहा गया था-“प्रतिवर्ष कम से कम एक लाख रुपये की धनराशि साहित्य के पुनरुत्थान एवं उन्नति के लिए, भारतीय विद्वानों को प्रोत्साहित करने के लिए और अंग्रेजी के अधीन भारतीय भू-भाग पर भारतीयों में वैज्ञानिक ज्ञान के प्रचार तथा प्रसार के लिए अनिवार्य रूप से व्यय की जानी चाहिये।”
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