Baba Amte Biography-मुरलीधर देविदास आमटे – Baba Amte साधारणतः भारत सामाजिक कार्यकर्ता और सामाजिक एक्टिविस्ट के नाम से जाने जाते है। विशेषतः वे कुष्ट रोग से तड़प रहे गरीबो की पुनः प्रतिष्टा और सशक्तिकरण के कार्य के लिए प्रसिद्ध है।
समाजसेवी बाबा आमटे की जीवनी – Baba Amte Biography In Hindi
डॉ. मुरलीधर देवीदास आमटे जो कि बाबा आमटे के नाम से ख्यात हैं, भारत के प्रमुख व सम्मानित समाजसेवी थे। समाज से परित्यक्त लोगों और कुष्ठ रोगियों के लिये उन्होंने अनेक आश्रमों और समुदायों की स्थापना की। इनमें चन्द्रपुर, महाराष्ट्र स्थित आनंदवन का नाम प्रसिद्ध है। इसके अतिरिक्त आमटे ने अनेक अन्य सामाजिक कार्यों, जिनमें वन्य जीवन संरक्षण तथा नर्मदा बचाओ आंदोलन प्रमुख हैं, के लिये अपना जीवन समर्पित कर दिया।

Baba Amte Biography
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प्रारंभिक जीवन:
बाबा आमटे का जन्म 26 दिसम्बर 1914 को महाराष्ट्र स्थित वर्धा जिले में हिंगणघाट गांव में हुआ था। इनके उनके पिता देवीदास हरबाजी आमटे शासकीय सेवा में लेखपाल थे। बरोड़ा से पाँच-छः मील दूर गोरजे गांव में उनकी जमींदारी थी। उनका बचपन बहुत ही ठाट-बाट से बीता। वे सोने के पालने में सोते थे और चांदी के चम्मच से उन्हें खाना खिलाया जाता था। बचपन में वे किसी राज्य के राजकुमार की तरह रहे। रेशमी कुर्ता, सिर पर ज़री की टोपी तथा पाँव में शानदार शाही जूतियाँ, यही उनकी वेष-भूषा होती थी जो उनको एक आम बच्चे से अलग कर देती थी। उनकी चार बहनें और एक भाई था। जिन युवाओं ने बाबा को कुटिया में सदा लेटे हुए ही देखा- शायद ही कभी अंदाज लगा पाए होंगे कि यह शख्स जब खड़ा रहा करता था तब क्या कहर ढाता था। अपनी युवावस्था में धनी जमींदार का यह बेटा तेज कार चलाने और हॉलीवुड की फिल्म देखने का शौकीन था। अँगरेजी फिल्मों पर लिखी उनकी समीक्षाएँ इतनी दमदार हुआ करती थीं कि एक बार अमेरिकी अभिनेत्री नोर्मा शियरर ने भी उन्हें पत्र लिखकर दाद दी।
उन्हें बाबा इसलिए नही कहा जाता था की वे कोई संत या महात्मा थे, बल्कि उन्हें इसलिए बाबा कहा जाता था क्योकि उनके माता-पिता ही उन्हें इस नाम से पुकारते थे। समय के साथ-साथ वे भी चौदह साल के हुए और उन्होंने अपनी खुद की गन (बंदूक) ले ली और उससे वे सूअर और हिरन का शिकार किया करते थे। जब वे गाड़ी चलाने जितने बड़े हुए तब उन्हें एक स्पोर्ट कार दी गयी थी जिसे चीते की चमड़ी से ढका गया था। उन्हें कभी निचली जाती के बच्चो के साथ खेलने से नही रोका गया था। बचपन से ही उन्हें जातिभेद में भरोसा नही था, वे सभी को एक समान मानते थे और हमेशा से कहते थे की उनका परिवार इस सामाजिक भेदभावो को नही मानता।
कानून विषय पर उन्होंने वर्धा में खास अभ्यास कर रखा था, जल्द ही वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाने में लग गए और भारतीय स्वतंत्रता नेताओ के लिए वे बचावपक्ष वकील का काम करते थे, 1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जिन भारतीय नेताओ को ब्रिटिश सरकार ने कारावास में डाला था उन सभी नेताओ का बचाव बाबा आमटे ने किया था। इसके बाद थोडा समय उन्होंने महात्मा गाँधी के सेवाग्राम आश्रम में बिताया और गांधीवाद के अनुयायी बने रहे। इसके बाद जीवन भर वे गांधी विचारो पर चलते रहे, जिसमे चरखे से उन की कटाई करना और खादी कपडे पहनना भी शामिल है। जब गांधीजी को पता चला की आमटे ने ब्रिटिश सैनिको से एक लड़की की जान बचायी है तो गांधीजी ने आमटे को “अभय साधक” का नाम दिया।
बाबा आमटे का सबसे महत्त्वपूर्ण कार्य कुष्ठ रोगियों की सेवा के लिए आनन्दवन नामक संस्था की स्थापना का था। जब वे 35 वर्ष के थे, तब उन्होंने उसकी स्थापना की थी। आज वह एक विशाल रूप धारण कर चुकी है। आनन्दवन के साथ ही उन्होंने एक अन्ध विद्यालय की स्थापना भी की। गरीब, बेसहारा बच्चों को आत्मनिर्भर बनाने हेतु उन्होंने गोकुल नामक संस्थान का गठन व संचालन किया। जब पंजाब में आतंकवाद का साया मण्डरा रहा था, कुछ गुमराह नवयुवक भारत की अखण्डता को तोड़ने में लगे थे, गांवों और शहरों में निहत्थे, निर्दोष नागरिकों की हत्याएं कर रहे थे, जहां बच्चे, बूढ़े और विधवा महिलाएं आसू भरे दिन गुजार रहे थे, भटके हुए पंजाबी नवयुवक पाकिस्तान जैसे शत्रु के साथ मिलकर न केवल आतंकवाद को बढ़ावा दे रहे थे, वरन् पंजाब को खालिस्तान बनाने में लगे हुए थे, आतंकवाद के साये तले निर्दोष नागरिकों की हत्याओं का सिलसिला थमने का नाम नहीं ले रहा था, ऐसा लग रहा था, जैसे देश को कुछ गुमराह लोग तोड़ने में लगे हैं, ऐसे ही समय में 72 वर्ष की अवस्था में पंजाब जाकर वहां से भारत जोड़ो आन्दोलन का सूत्रपात किया।
आश्रम में रहते हुए बाबा आमटे कुष्ठ रोगियों की सेवा में लग गए । उन्होंने आश्रम के परिवेश को ऐसा बनाया, जहाँ कुष्ठ रोगी सम्मान से जीवन जी सकें तथा यथा क्षमता आश्रम की गतिविधियों में योगदान दे सकें । उसे बाबा आमटे की त्याग भावना का चरम बिन्दु कहा जा सकता है कि कुष्ठ रोग निवारण के दौर में किए जा रहे चिकित्सा और औषधि के प्रयोग परखने के लिए बाबा ने अपने शरीर को कुष्ठ के पनपने का माध्यम बनाना स्वीकार कर लिया, ताकि उस पर नई औषधि और चिकित्सा पद्धति आजमाई जा सके । आनन्दवन आश्रम में कुष्ठ रोगियों की सेवा के अतिरिक्त भी बाबा आमटे ने ऐसा कार्य किया जिसे उनकी चेतना का तथा नेतृत्व क्षमता का उदाहरण कहा जा सकता है । 1985 में बाबा ने ‘भारत जोड़ो’ आन्दोलन देश की अखण्डता के लिए छेड़ा जिसे वह कश्मीर से कन्याकुमारी तक ले गए । इस आन्दोलन में शान्ति तथा पर्यावरण की रक्षा का सन्देश भी निहित था । आनन्दवन के बाद 1957 में बाबा आमटे ने 40 हेक्टेयर के क्षेत्र में, नागपुर के उत्तर में अशोकवन बनाया । एक दशक बाद यही स्थापना सोमनाथ में भी रची गई । आनन्दवन की ही तरह इन सब स्थानों में विकलांगों के पुनर्वास की पूरी व्यवस्था तैयार की गई है ।
एक दिन बाबा आमटे ने देखा कि एक कोढ़ी धुआँधार बारिश में भींग रहा है और उसकी सहायता के लिए कोई आगे नहीं आ रहा है । बाबा आमटे ने सोंचा कि अगर इसकी जगह मैं होता तो ? बाबा आमटे का हृदय द्रवित हो गया और उनके नेत्रों से अश्रुधारा प्रवाहित होने लगी । इस प्रसंग ने बाबा आमटे को इतना प्रभावित किया कि उन्होंने ऐसे लोगों की सेवा का कठिन व्रत ले लिया । बाबा आमटे ने उस रोगी को उठाया और अपने घर की ओर चल दिए । इसके बाद बाबा आमटे ने कुष्ठरोग संबंधी सारा ज्ञान प्राप्त किया और बरोरा के पास घने जंगल में अपनी सहधर्मिणी साधनाताई, दो पुत्रों, एक गाय एवं सात रोगियों के साथ “आनन्दवन” की स्थापना की । बाबा आमटे और उनके सहयोगियों के कठिन श्रम से इस घने जंगल में मंगल होने लगा। जमीन को समतल और उपजाऊँ बनाया गया, कुएँ खोदे गए, पेड़ लगाए गए, बीज बोए गए और कुष्ठरोगियों के हृदय में भी खुशहाल जीवन की आशा पनपाई गई।
‘ज्वाला आणि फुले’ और ‘उज्ज्वल उद्यासाठी’ नामक दो काव्यसंग्रह बाबा आमटे ने लिखा। इन कविताओं में तत्कालीन संघर्ष की छवि देखने को मिल सकती है। बाबा आम्टे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया। नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया।
आनंद वन स्थापना :
इसके बाद उन्होंने कुष्ठ रोगियों के बारे में जानकारी इकट्ठा की और एक आश्रम स्थापित किया जहां कुष्ठ रोगियों की सेवा अब भी निःशुल्क की जाती है. इस आश्रम का नाम है आनंद वन. यहां आने वाले रोगियों को उन्होंने एक मंत्र दिया ‘श्रम ही है श्रीराम हमारा’. जो रोगी कभी समाज से अलग-थलग होकर रहते भीख मांगते थे उन्हें बाबा आमटे ने श्रम के सहारे समाज में सर उठाकर जीना सीखाया. बाबा आम्टे ने “आनन्द वन” के अलावा और भी कई कुष्ठरोगी सेवा संस्थानों जैसे, सोमनाथ, अशोकवन आदि की स्थापना की है जहाँ हजारों रोगियों की सेवा की जाती है और उन्हें रोगी से सच्चा कर्मयोगी बनाया जाता है. इसके अलावा बाबा आमटे को भारत जोड़ो आंदोलन के लिए भी याद किया जाता है. बाबा आम्टे ने राष्ट्रीय एकता को बढ़ावा देने के लिए 1985 में कश्मीर से कन्याकुमारी तक और 1988 में असम से गुजरात तक दो बार भारत जोड़ो आंदोलन चलाया. नर्मदा घाटी में सरदार सरोवर बांध निर्माण और इसके फलस्वरूप हजारों आदिवासियों के विस्थापन का विरोध करने के लिए 1989 में बाबा आम्टे ने बांध बनने से डूब जाने वाले क्षेत्र में निजी बल (आंतरिक बल) नामक एक छोटा आश्रम बनाया.
समर्पित कार्य –
कानून विषय पर उन्होंने वर्धा में खास अभ्यास कर रखा था, जल्द ही वे भारतीय स्वतंत्रता सेनानियों में शामिल हो गए और भारत को ब्रिटिश राज से मुक्ति दिलाने में लग गए और भारतीय स्वतंत्रता नेताओ के लिए वे बचावपक्ष वकील का काम करते थे,
1942 के भारत छोडो आन्दोलन में जिन भारतीय नेताओ को ब्रिटिश सरकार ने कारावास में डाला था उन सभी नेताओ का बचाव बाबा आमटे ने किया था। इसके बाद थोडा समय उन्होंने महात्मा गाँधी के सेवाग्राम आश्रम में बिताया और गांधीवाद के अनुयायी बने रहे। इसके बाद जीवन भर वे गांधी विचारो पर चलते रहे, जिसमे चरखे से उन की कटाई करना और खादी कपडे पहनना भी शामिल है। जब गांधीजी को पता चला की आमटे ने ब्रिटिश सैनिको से एक लड़की की जान बचायी है तो गांधीजी ने आमटे को “अभय साधक” का नाम दिया।
उस दिनों कुष्ट रूप समाज में तेज़ी से फ़ैल रहा था और बहोत से लोग इस बीमारी से जूझ रहे थे। लोगो में ऐसी ग़लतफ़हमी भी फ़ैल गयी थी की यह बीमारी जानलेवा है। लकिन आमटे ने लोगो की इस ग़लतफ़हमी को दूर किया और कुष्ट रोग से प्रभावित मरीज के इलाज की उन्होंने काफी कोशिशे भी की। बल्कि ये भी कहा जाता था की कुष्ट रोग से ग्रसित मरीज के संपर्क में आने से स्वस्थ व्यक्ति में भी यह बीमारी फ़ैल सकती है लेकिन फिर भी इन सभी बातो पर ध्यान न देते हुए उन्होंने हमेशा कुष्ट रोग से पीड़ित मरीजो की सेवा की और उन का इलाज भी करवाया।
आमटे ने गरीबो की सेवा और उनके सशक्तिकरण और उनके इलाज के लिए भारत के महाराष्ट्र में तीन आश्रम की स्थापना की। 15 अगस्त 1949 को उन्होंने आनंदवन में एक पेड़ के निचे अस्पताल की शुरुवात भी की। 1973 में आमटे ने गडचिरोली जिले के मदिया गोंड समुदाय के लोगो की सहायता के लिए लोक बिरादरी प्रकल्प की स्थापना भी की थी।
Baba Amte ने अपने जीवन को बहुत से सामाजिक कार्यो में न्योछावर किया, इनमे मुख्य रूप से लोगो में सामाजिक एकता की भावना को जागृत करना, जानवरों का शिकार करने से लोगो को रोकना और नर्मदा बचाओ आन्दोलन शामिल है। उनके कार्यो को देखते हुए 1971 में उन्हें पद्म श्री अवार्ड से सम्मानित किया गया।
परिवार के सदस्यों का समर्पित कार्य –
आमटे का विवाह इंदु घुले (साधना आमटे) से हुआ था। उनकी पत्नी भी उनके साथ सामाजिक कार्यो में भाग लेती थी और कदम से कदम मिलाकर जनसेवा करती थी। उनके दो बेटे डॉ. विकास आमटे और डॉ. प्रकाश आमटे और दो बहु डॉ. मंदाकिनी और डॉ. भारती है, सभी डॉक्टर है। इन चारो ने हमेशा सामाजिक कार्यो में अपना योगदान दिया और हमेशा वे अपने पिता के नक्शेकदम पर ही चलते रहे।
उनका बेटा डॉ. प्रकाश आमटे और उनकी पत्नी डॉ. मंदाकिनी आमटे महाराष्ट्र के गडचिरोली जिले के हेमलकसा ग्राम में मदिया गोंड समुदाय के लोगो के लिए एक स्कूल और एक अस्पताल चलाते थे। प्रकाश आमटे से विवाह करने के बाद मंदाकिनी आमटे ने गवर्नमेंट मेडिकल जॉब छोड़ दिया और अस्पताल और स्कूल चलाने के लिए हेमलकसा चली गयी थी और साथ ही जंगलो में घायल हुए जानवरों का इलाज भी करती थी।
उनके दो बेटे है, पहला बेटा दिगंत, डॉक्टर है और दूसरा बेटा अनिकेत एक इंजिनियर है। इन दोनों ने भी कई सामाजिक कार्य किये है। 2008 में प्रकाश और मंदानिकी के सामाजिक कार्यो को देखते हुए उन्हें मेगसेसे अवार्ड से सम्मानित किया गया था।
Baba Amte का बड़ा बेटा विकास आमटे और उनकी पत्नी भारती आमटे आनंदवन में एक अस्पताल चलाते है और कई ऑपरेशन भी करते है।
वर्तमान में आनंदवन और हेमलकसा ग्राम में एक-एक ही अस्पताल है। आनंदवन में एक यूनिवर्सिटी, एक अनाथाश्रय और अंधो और गरीबो के लिए एक स्कूल भी है। आज स्व-संचालित आनंदवन आश्रम में तक़रीबन 5000 लोग रहते है। महाराष्ट्र के आनंदवन का सामाजिक विकास प्रोजेक्ट आज पुरे विश्व तक पहुच चूका है। आनंदवन के बाद आमटे ने कुष्ट रोग से पीड़ित मरीजो के इलाज के लिए सोमनाथ और अशोकवन आश्रम की भी स्थापना की थी।
मेधा पाटकर के साथ मिलकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन –
1990 में मेधा पाटकर के साथ मिलकर नर्मदा बचाओ आन्दोलन करने के लिए उन्होंने आनंदवन छोड़ दिया था। जिसमे नर्मदा नदी पर सरदार सरोवर बांध बनाने के लिए वे संघर्ष कर रहे थे और स्थानिक लोगो द्वारा नर्मदा नदी के तट पर की जा रही गन्दगी की रोकने की कोशिश भी कर रहे थे।
Baba Amte को प्राप्त अवार्ड –
• पद्म श्री, 1971
• रमण मेगसेसे अवार्ड, 1985
• पद्म विभूषण, 1986
• मानव अधिकार के क्षेत्र में अतुल्य योगदान के लिए यूनाइटेड नेशन प्राइज, 1988
• गाँधी शांति पुरस्कार, 1999
• राष्ट्रिय भुषण, 1978 : FIE फाउंडेशन इचलकरंजी (भारत)
• जमनालाल बजाज अवार्ड, 1979
• एन.डी. दीवान अवार्ड, 1980 : NASEOH, मुंबई
• रामशास्त्री अवार्ड, 1983 : राम्शात्री प्रभुने संस्था, महाराष्ट्र, भारत
• इंदिरा गांधी मेमोरियल अवार्ड, 1985 : सामाजिक कार्यो को देखते हुए मध्य प्रदेश सरकार द्वारा दिया गया
• राजा राम मोहन रॉय अवार्ड, 1986 : दिल्ली
• फ्रांसिस मश्चियो प्लैटिनम जुबिली अवार्ड, 1987 : मुंबई
• जी.डी. बिरला इंटरनेशनल अवार्ड, 1987 : मानवता के विकास में योगदान के लिए
• टेम्पलेटन प्राइज, 1990 (बाबा आमटे और चार्ल्स बिर्च को संयुक्त रूप से यह पुरस्कार दिया गया था)
• महादेव बलवंत नातू पुरस्कार, 1991, पुणे, महाराष्ट्र
• आदिवासी सेवक अवार्ड, 1991, भारत सरकार
• कुसुमाग्रज पुरस्कार, 1991
• डॉ. बाबासाहेब आंबेडकर दलित मित्र अवार्ड, 1992, भारत सरकार
• श्री नेमीचंद श्रीश्रिमल अवार्ड, 1994
• फ्रांसिस टोंग मेमोरियल अवार्ड, 1995, वोलूंट्री हेल्थ एसोसिएशन ऑफ़ इंडिया
• कुष्ट मित्र पुरस्कार, 1995 : विदर्भ महारोगी सेवा मंडल, अमरावती, महाराष्ट्र
• भाई कन्हैया अवार्ड, 1997 : श्री गुरु हरिकृष्ण शिक्षण संस्था, भटिंडा, पंजाब
• मानव सेवा अवार्ड, 1997 : यंग मैन गांधियन एसोसिएशन, राजकोट, गुजरात
• सारथि अवार्ड, 1997, नागपुर, महाराष्ट्र
• महात्मा गांधी चैरिटेबल ट्रस्ट अवार्ड, 1997, नागपुर, महाराष्ट्र
• गृहिणी सखी सचिव पुरस्कार, 1997, गदिमा प्रतिष्ठान, महाराष्ट्र
• कुमार गंधर्व पुरस्कार, 1998
• अपंग मित्र पुरस्कार, 1998, अपंगो के सहायक, कोल्हापुर, महाराष्ट्र
• भगवान महावीर मेहता अवार्ड, 1998, मुंबई
• दिवालिबेन मोहनलाल मेहता अवार्ड, 1998, मुंबई
• जस्टिस के.एस. हेगड़े फाउंडेशन अवार्ड, 1998, कर्नाटक
• बया कर्वे अवार्ड, 1998, पुणे महाराष्ट्र
• सावित्रीबाई फुले अवार्ड, 1998, भारत सरकार
• फेडरेशन ऑफ़ इंडियन चैम्बर ऑफ़ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री अवार्ड, 1988 : FICCI
• सतपुल मित्तल अवार्ड, 1998, नेहरु सिद्धांत केंद्र ट्रस्ट, लुधियाना, पंजाब
• आदिवासी सेवक पुरस्कार, 1998, महाराष्ट्र राज्य सरकार
• गाँधी शांति पुरस्कार, 1999
• डॉ. आंबेडकर इंटरनेशनल अवार्ड फॉर सोशल चेंज, 1999
• महाराष्ट्र भुषण अवार्ड, 2004, महाराष्ट्र सरकार
• भारथवासा अवार्ड, 2008
सम्माननीय पदवी (टाइटल)
• डी.लिट (D.Litt), टाटा इंस्टिट्यूट ऑफ़ सोशल साइंस, मुंबई, भारत
• डी.लिट (D.Litt), 1980 : नागपुर यूनिवर्सिटी, नागपुर, भारत
• कृषि रत्न, 1981 : सम्माननीय डॉक्टरेट, PKV कृषि यूनिवर्सिटी, अकोला, महाराष्ट्र, भारत
• डी.लिट (D.Litt), 1985-86 : पुणे यूनिवर्सिटी, पुणे, भारत
• देसिकोत्तमा, 1988 : सम्माननीय डॉक्टरेट, विश्व-भारती उनिवेर्सित्य्म शांतिनिकेतन, पश्चिम बंगाल, भारत
• गाँधी ने आमटे को अभय साधक का नाम दिया था।
सुविचार –
“मै एक महान नेता बनने के लिए काम नही करना चाहता, बल्कि मै तो जरूरतमंद गरीबो की सहायता करना चाहता हु।”
इस संसार में कुछ लोग अपने लिए जीते है, तो कुछ लोग देश के लिए जीते है और कुछ लोग समाज के लिए जीते है। ऐसा जीवन जीने वाले इंसानों से थोड़े महान इंसान है – बाबा आमटे। वे ना केवल समाज के लिए जीये बल्कि दूसरो के लिए जीये मतलब परोपकार में ही उन्होंने अपना जीवन समर्पित कर दिया था। वे हमेशा अपनी बातो में कहते थे की “नर ही नारायण है” इस सुविचार को अपने जीवन में बाबा आमटे से बेहतर शायद ही किसी ने अपनी जिंदगी में उतारा हो।
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