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Citizenship Amendment Bill 2019: नागरिकता संशोधन विधेयक 2019

Citizenship Amendment Bill 2019: नागरिकता संशोधन विधेयक 2019
Citizenship Amendment Bill 2019: नागरिकता संशोधन विधेयक 2019

Citizenship Amendment Bill 2019: नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 

नागरिकता संशोधन विधेयक 2019 क्या है? जाने पूरी जानकरी हिंदी में

Hello Friends, wikimeinpedia.com पर आपका स्वागत है,जैसा की आप सभी जानते हैं की हम आप सभी छात्र-छात्राओं  लिए प्रतिदिन Competitive exams से सम्बंधित जानकारियां शेयर करते हैं|आज के पोस्ट के माध्यम से हम आपको आज राज्यसभा में पेश हो रहा विधेयक जो काफी समय से चर्चा में है “Citizenship Amendment Bill 2019 : नागरिकता संशोधन विधेयक 2019″ के बारे में विस्तारपूर्वक बतायेंगे.

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संदर्भ

देश भर में हो रहे विरोध प्रदर्शनों के बीच लोकसभा में नागरिकता (संशोधन) विधेयक, 2019 पारित कर दिया गया। विदित हो कि नागरिकता संशोधन विधेयक के माध्यम से नागरिकता अधिनियम, 1955 में संशोधन किया जाएगा। इस विधेयक में बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हुए धार्मिक अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता देने का प्रस्ताव किया गया है। ध्यातव्य है कि इससे पूर्व वर्ष 2016 में भी केंद्र सरकार ने नागरिकता (संशोधन) विधेयक सदन के समक्ष प्रस्तुत किया था, हालाँकि लोकसभा से पारित होने के बावजूद भारी विरोध प्रदर्शन के कारण सरकार ने इसे राज्यसभा में प्रस्तुत नहीं किया। वर्तमान विधेयक को लेकर भी देश के कई हिस्सों खासकर पूर्वोत्तर के राज्यों में काफी प्रदर्शन हो रहे हैं। प्रदर्शनकारियों का कहना है कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष राज्य है और धार्मिक आधार पर देश की नागरिकता को परिभाषित करना भारतीय संविधान के प्रावधानों का उल्लंघन है।

क्या कहता है नागरिकता संशोधन विधेयक, 2019?

  • विधेयक में यह प्रावधान किया गया है कि 31 दिसंबर, 2014 को या उससे पहले भारत में आकर रहने वाले अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान के हिंदुओं, सिखों, बौद्धों, जैनियों, पारसियों और ईसाइयों को अवैध प्रवासी नहीं माना जाएगा।
    • नागरिकता अधिनियम, 1955 अवैध प्रवासियों को भारतीय नागरिकता प्राप्त करने से प्रतिबंधित करता है। इस अधिनियम के तहत अवैध प्रवासी को ऐसे व्यक्ति के रूप में परिभाषित किया गया है: (1) जिसने वैध पासपोर्ट या यात्रा दस्तावेज़ों के बिना भारत में प्रवेश किया हो, या (2) जो अपने निर्धारित समय-सीमा से अधिक समय तक भारत में रहता है।
  • विदित हो कि अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आने वाले धार्मिक अल्पसंख्यकों को उपरोक्त लाभ प्रदान करने के लिये उन्हें विदेशी अधिनियम, 1946 और पासपोर्ट (भारत में प्रवेश) अधिनियम, 1920 के तहत भी छूट प्रदान करनी होगी, क्योंकि वर्ष 1920 का अधिनियम विदेशियों को अपने साथ पासपोर्ट रखने के लिये बाध्य करता है, जबकि 1946 का अधिनियम भारत में विदेशियों के प्रवेश और प्रस्थान को नियंत्रित करता है।
  • वर्ष 1955 का अधिनियम कुछ शर्तों (Qualification) को पूरा करने वाले व्यक्ति (अवैध प्रवासियों के अतिरिक्त) को नागरिकता प्राप्ति के लिये आवेदन करने की अनुमति प्रदान करता है। अधिनियम के अनुसार, इसके लिये अन्य बातों के अलावा उन्हें आवेदन की तिथि से 12 महीने पहले तक भारत में निवास और 12 महीने से पहले 14 वर्षों में से 11 वर्ष भारत में बिताने की शर्त पूरी करनी पड़ती है।
  • उल्लेखनीय है कि लोकसभा द्वारा पारित हालिया संशोधन विधेयक अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 5 वर्ष करने का प्रावधान करता है।
  • विधेयक के अनुसार, नागरिकता प्राप्त करने पर ऐसे व्यक्तियों को भारत में उनके प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जाएगा और अवैध प्रवास या नागरिकता के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाहियाँ बंद कर दी जाएंगी।
  • अवैध प्रवासियों के लिये नागरिकता संबंधी उपरोक्त प्रावधान संविधान की छठी अनुसूची में शामिल असम, मेघालय, मिज़ोरम और त्रिपुरा के आदिवासी क्षेत्रों पर लागू नहीं होंगे।
    • इसके अलावा ये प्रावधान बंगाल ईस्टर्न फ्रंटियर रेगुलेशन, 1873 के तहत अधिसूचित ‘इनर लाइन’ क्षेत्रों पर भी लागू नहीं होंगे। ज्ञात हो कि इन क्षेत्रों में भारतीयों की यात्राओं को ‘इनर लाइन परमिट’ के माध्यम से विनियमित किया जाता है।
    • वर्तमान में यह परमिट व्यवस्था अरुणाचल प्रदेश, मिज़ोरम और नगालैंड में लागू है।
  • नागरिकता अधिनियम, 1955 के अनुसार, केंद्र सरकार किसी भी OCI कार्डधारक के पंजीकरण को निम्नलिखित आधार पर रद्द कर सकती है:
    • यदि OCI पंजीकरण में कोई धोखाधड़ी सामने आती है।
    • यदि पंजीकरण के पाँच साल के भीतर OCI कार्डधारक को दो साल या उससे अधिक समय के लिये कारावास की सज़ा सुनाई गई है।
    • यदि ऐसा करना भारत की संप्रभुता और सुरक्षा के लिये आवश्यक हो।
  • प्रस्तावित विधेयक में OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने के लिये एक और आधार जोड़ने की बात की गई है, जिसके तहत यदि OCI कार्डधारक अधिनियम के प्रावधानों या केंद्र सरकार द्वारा अधिसूचित कोई अन्य कानून का उल्लंघन करता है तो भी केंद्र के पास उस OCI कार्डधारक के पंजीकरण को रद्द करने का अधिकार होगा।

2016 के विधेयक और 2019 के विधेयक में प्रमुख अंतर

  • प्रवेश की तारीख से भारत का नागरिक माना जान और अवैध प्रवास के संबंध में उनके खिलाफ सभी कानूनी कार्यवाही बंद करने जैसे प्रावधान वर्ष 2019 के नागरिकता संशोधन विधेयक में नए हैं, जबकि ये वर्ष 2016 के नागरिकता संशोधन विधेयक में नहीं थे। साथ ही छठी अनुसूची में शामिल क्षेत्रों के अपवाद का बिंदु भी 2019 के विधेयक में नया है।
  • वर्ष 2016 के विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी तथा ईसाई प्रवासियों के लिये 11 वर्ष की शर्त को घटाकर 6 वर्ष करने का प्रावधान किया गया था, जबकि हालिया विधेयक में इसे और कम (5 वर्ष) कर दिया गया है।

1. क्या है CAB का प्रस्ताव?
नागरिकता संशोधन बिल नागरिकता अधिनियम 1955 के प्रावधानों को बदलने के लिए पेश किया जा रहा है. नागरिकता बिल 1955 के हिसाब से किसी अवैध प्रवासी को भारत की नागरिकता नहीं दी जा सकती. अब इस संशोधन से नागरिकता प्रदान करने से संबंधित नियमों में बदलाव हो गया है .

2. CAB के दायरे में कौन आएगा?
नागरिकता बिल में इस संशोधन से मुख्य रूप से छह जातियों के अवैध प्रवासियों को फायदा होगा. बांग्लादेश, पाकिस्तान और अफगानिस्तान से आए हिंदु ..

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विधेयक से संबंधित विवाद

  • विधेयक को लेकर विरोध कर रहे लोगों का कहना है कि यह विधेयक एक धर्म विशेष के खिलाफ है और भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 का उल्लंघन करता है। विधेयक के आलोचकों का कहना है कि भारत जैसे धर्मनिरपेक्ष देश में धर्म के आधार पर किसी से भेदभाव नहीं किया जा सकता।
    • विदित हो कि भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 सभी व्यक्तियों को कानून के समक्ष समानता की गारंटी देता है अर्थात् कानून के समक्ष सभी बराबर हैं। यह कानून भारतीय नागरिकों और विदेशियों दोनों पर समान रूप से लागू होता है।
  • विशेषज्ञों का मानना है कि यह विधेयक अवैध प्रवासियों को मुस्लिम और गैर-मुस्लिम में विभाजित कर कानून में धार्मिक भेदभाव को सुनिश्चित करने का प्रयास करता है, जो कि लंबे समय से चली आ रही धर्मनिरपेक्ष संवैधानिक लोकनीति के विरुद्ध है।
  • नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर पूर्वोत्तर राज्यों मुख्यतः असम में खासा विरोध हो रहा है, क्योंकि वे इस विधेयक को वर्ष 1985 के असम समझौते (Assam Accord) से पीछे हटने के एक कदम के रूप में देख रहे हैं।
    • असम के अलावा पूर्वोत्तर के कई अन्य राज्यों में भी इसे लेकर काफी विरोध हो रहा है, क्योंकि वहाँ के नागरिकों को नागरिकता संशोधन विधेयक के कारण जनांकिकीय परिवर्तन का डर है।
  • साथ ही OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने का नया आधार केंद्र सरकार के विवेकाधिकार का दायरा विस्तृत करता है। क्योंकि कानून के उल्लंघन में हत्या जैसे गंभीर अपराध के साथ यातायात नियमों का मामूली उल्लंघन भी शामिल है।

विधेयक को लेकर सरकार का पक्ष

  • सरकार का कहना है कि इन प्रवासियों ने अपने-अपने देशों में काफी ‘भेदभाव और धार्मिक उत्पीड़न’ का सामना किया है। प्रस्तावित संशोधन देश की पश्चिमी सीमाओं से गुजरात, राजस्थान, दिल्ली, मध्य प्रदेश और अन्य राज्यों में आए उत्पीड़ित लोगों को राहत प्रदान करेगा।
  • इन छह अल्पसंख्यक समुदायों सहित भारतीय मूल के कई लोग नागरिकता अधिनियम, 1955 के तहत नागरिकता पाने में असफल तो रहते ही हैं और भारतीय मूल के समर्थन में साक्ष्य देने में भी असमर्थ रहते हैं। इसलिये उन्हें देशीयकरण द्वारा नागरिकता प्राप्त करने के लिये आवेदन करना पड़ता है, जो कि अपेक्षाकृत एक लंबी प्रक्रिया है।

असम समझौते का विवाद

  • वर्ष 1971 में जब पूर्वी पाकिस्तान (वर्तमान बांग्लादेश) के खिलाफ पाकिस्तानी सेना की हिंसक कार्रवाई शुरू हुई तो वहाँ के लगभग 10 लाख लोगों ने असम में शरण ली। हालाँकि बांग्लादेश बनने के बाद इनमें से अधिकांश वापस लौट गए, लेकिन फिर भी बड़ी संख्या में बांग्लादेशी असम में ही अवैध रूप से रहने लगे।
  • वर्ष 1971 के बाद भी जब बांग्लादेशी अवैध रूप से असम आते रहे तो इस जनसंख्या परिवर्तन ने असम के मूल निवासियों में भाषायी, सांस्कृतिक और राजनीतिक असुरक्षा की भावना उत्पन्न कर दी और 1978 के आस-पास वहाँ एक आंदोलन शुरू हुआ।
  • असम में घुसपैठियों के खिलाफ वर्ष 1978 से चले लंबे आंदोलन और 1983 की भीषण हिंसा के बाद समझौते के लिये बातचीत की प्रक्रिया शुरू हुई।
  • इसके परिणामस्वरूप 15 अगस्त, 1985 को केंद्र सरकार और आंदोलनकारियों के बीच समझौता हुआ जिसे असम समझौते (Assam Accord) के नाम से जाना जाता है।
  • असम समझौते के मुताबिक, 25 मार्च, 1971 के बाद असम में आए सभी बांग्लादेशी नागरिकों को यहाँ से जाना होगा, चाहे वे हिंदू हों या मुसलमान। इस तरह यह समझौता अवैध प्रवासियों के बीच धार्मिक आधार पर भेदभाव नहीं करता है।
  • इस समझौते के तहत 1951 से 1961 के बीच असम आए सभी लोगों को पूर्ण नागरिकता और मतदान का अधिकार देने का फैसला लिया गया। साथ ही 1961 से 1971 के बीच असम आने वाले लोगों को नागरिकता तथा अन्य अधिकार दिये गए, लेकिन उन्हें मतदान का अधिकार नहीं दिया गया।
  • असम में इस विधेयक को लेकर विरोध की एक बड़ी वजह यही है कि हालिया नागरिक संशोधन विधेयक असम समझौते का उल्लंघन करता है, क्योंकि इसके तहत उन लोगों को भारतीय नागरिकता दी जाएगी जो 1971 एवं 2014 से पहले भारत आए हैं।

धर्म आधारित परिभाषा- अनुच्छेद 14 का उल्लंघन?

  • विधेयक के अनुसार, जो अवैध प्रवासी अफगानिस्तान, बांग्लादेश या पाकिस्तान के निर्दिष्ट अल्पसंख्यक समुदायों के हैं, उनके साथ अवैध प्रवासियों जैसा व्यवहार नहीं किया जाएगा। इन अल्पसंख्यक समुदायों में हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी और ईसाई शामिल हैं। इसका तात्पर्य यह है कि इन देशों से आने वाले अवैध प्रवासी जिनका संबंध इन 6 धर्मों से नहीं है, वे नागरिकता के लिये पात्र नहीं हैं।
  • भारतीय संविधान का अनुच्छेद 14 भारतीय तथा विदेशी नागरिकों सभी को समानता की गारंटी देता है। यह अधिनियम दो समूहों के बीच अंतर करने की अनुमति केवल तभी देता है जब यह उचित एवं तर्कपूर्ण उद्देश्य के लिये किया जाए।
  • ऐसे में यह प्रश्न उठना स्वाभाविक है कि क्या यह प्रावधान संविधान के अनुच्छेद के तहत प्रदत्त समानता के अधिकार का उल्लंघन करता है, क्योंकि यह अवैध प्रवासियों के बीच (1) उनके मूल देश (2) धर्म (3) भारत में प्रवेश की तारीख और (4) भारत में रहने की जगह आदि के आधार पर भेदभाव करता है।
  • विधेयक में बांग्लादेश और पाकिस्तान को शामिल करने के पीछे तर्क दिया गया है कि विभाजन से पूर्व कई भारतीय इन क्षेत्रों में रहते थे, परंतु अफगानिस्तान को शामिल करने के पीछे कोई तर्कपूर्ण व्याख्या नहीं दी गई है।
  • सरकार बार-बार यह दोहरा रही है कि इस विधेयक का एकमात्र उद्देश्य धार्मिक आधार पर उत्पीड़ित अल्पसंख्यकों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है, परंतु यदि असल में ऐसा है तो विधेयक में अफगानिस्तान, बांग्लादेश एवं पाकिस्तान के अतिरिक्त अन्य पड़ोसी देशों का ज़िक्र क्यों नहीं है।
    • यह तथ्य नज़रअंदाज़ नहीं किया जा सकता कि श्रीलंका में भी भाषायी अल्पसंख्यकों जैसे-तमिल ईलम के उत्पीड़न का एक लंबा इतिहास रहा है। वहीं भारत को म्याँमार के रोहिंग्या मुसलमानों के साथ हुए अत्याचारों को भी नहीं भूलना चाहिये।
  • जानकारों का कहना है कि विधेयक में मात्र 6 धर्मों को शामिल करने का उद्देश्य भी काफी हद तक अस्पष्ट है, क्योंकि गत कुछ वर्षों में पाकिस्तान के अल्पसंख्यक अहमदिया मुसलमानों, जिन्हें पाकिस्तान में गैर-मुस्लिम माना जाता है, के उत्पीड़न की खबरें भी सामने आती रही हैं।
  • 31 दिसंबर, 2014 की तारीख का चुनाव करने के पीछे का उद्देश्य भी स्पष्ट नहीं किया गया है।

NRC और नागरिकता संशोधन विधेयक

  • NRC या राष्ट्रीय नागरिक रजिस्टर वह रजिस्टर है जिसमें सभी भारतीय नागरिकों का विवरण शामिल है। इसे वर्ष 1951 की जनगणना के बाद तैयार किया गया था। रजिस्टर में उस जनगणना के दौरान गणना किये गए सभी व्यक्तियों के विवरण शामिल थे।
  • गौरलतब है कि असम वह पहला राज्य था जहाँ 1951 के बाद NRC को अपडेट किया गया था। इसी वर्ष 31 अगस्त को अपडेट करने का कार्य पूरा हुआ था और अंतिम सूची जारी की गई थी।
  • NRC की अंतिम सूची में 19,06,657 लोगों का नाम शामिल नहीं किया गया था, ज्ञात हो कि NRC से बाहर होने वालों की सूची में हिंदू और मुस्लिम दोनों ही धर्म के लोग शामिल थे।
  • नागरिकता संशोधन विधेयक में NRC से जुड़ा एक विवाद यह भी है कि इसके आने से असम के गैर-मुस्लिमों को नागरिकता प्राप्त करने का एक और अवसर मिल जाएगा, जबकि वहाँ के मुस्लिमों को अवैध प्रवासी घोषित कर उन पर विदेशी कानून लागू किये जाएंगे। जानकारों का मानना है कि इससे NRC का कार्यान्वयन प्रभावित होगा।

अंतर्राष्ट्रीय प्रतिक्रिया

  • नागरिकता संशोधन विधेयक को लेकर अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी काफी चर्चाएँ हो रही हैं। यूनाइटेड स्टेट्स कमीशन ऑन इंटरनेशनल रिलीजियस फ्रीडम (United States Commission on International Religious Freedom-USCIRF) ने लोकसभा में इस विधेयक के पारित होने पर चिंता जताई है।
  • USCIRF ने अपने बयान में कहा है कि यदि यह विधेयक भारतीय संसद से पारित हो जाता है तो वह भारतीय गृह मंत्री सहित कई अन्य प्रमुख नेताओं पर प्रतिबंध लगाने पर विचार कर सकता है।
  • वहीं इस संदर्भ में भारतीय विदेश मंत्रालय का कहना है कि आयोग द्वारा दिया गया बयान न तो सही है और न ही वांछित है। मंत्रालय के अनुसार, USCIRF अपने पूर्वाग्रहों के आधार पर ही अपनी धारणाएँ बना रहा है।

आगे की राह

  • केवल धर्म के आधार पर लोगों के बीच भेदभाव करना स्पष्ट रूप से धर्मनिरपेक्षता के सिद्धांतों के विरुद्ध है। आवश्यक है कि इस विधेयक को ‘बुनियादी संरचना सिद्धांत’ (Basic Structure Doctrine) की कसौटी पर खरा उतरने के लिये छोड़ दिया जाना चाहिये।
    • बुनियादी संरचना सिद्धांत एक भारतीय न्यायिक सिद्धांत है जिसके अनुसार भारत के संविधान में मौजूद कुछ बुनियादी विशेषताओं को संसद द्वारा संशोधनों के माध्यम से परिवर्तित या खत्म नहीं किया जा सकता।
  • विधेयक में OCI कार्डधारक का पंजीकरण रद्द करने संबंधी नए प्रावधानों को और स्पष्ट किया जाना चाहिये।

ध्यान दें -:

  • 4 दिसम्बर 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में Citizenship Amendment Bill पेश की.
  • नागरिकता संशोधन विधेयक का मुख्य उद्देश्य प्रमुख छह समुदायों -हिन्दू, सिख, ईसाई,जैन, बौध्द तथा पारसी के लोगों को भारतीय नागरिकता प्रदान करना है.
  • 4 दिसम्बर 2019 को केंद्र सरकार द्वारा लोकसभा में Citizenship Amendment Bill पेश की.
  • मौजूदा कानून में बिल के जरिये संशोधन करना.
  • इस विधेयक में मुस्लिमों को शामिल नही किया गया है. यही वजह है की विपक्ष इस बिल को धर्म निरपेक्ष सिध्दांतों के खिलाफ है. यह कह कर इसकी आलोचना कर रहे है.
  • गैर-मुस्लिम शरणार्थियों को नागरिकता देने वाला विधेयक लोकसभा में पेश किया जा सकता है.
  • रोहिंग्याओं से जम्मू-कश्मीर निजात चाह्ता है.
  • नए विधेयक में अन्य संशोधन भी किये गये है. इस बिल में’ गैरकानूनी रूप से भारत में घुसे लोगों’ तथा पडोसी देशों में धार्मिक अत्याचारों का शिकार होकर भारत में शरण लेने वाले लोगों में साफ अंतर किया जा सके.
  • नागरिक संशोधन विधेयक का संसद के निचले सदन लोकसभा में आसानी से पारित हो जाना लगभग तय ही है, लेकिन राज्यसभा में यह पारित होना आसन नहीं है, क्योंकि केंद्र सरकार के पास बहुमत नहीं है.
    कुछ पार्टी इस बिल का विरोध में है तो वही कुछ पार्टी सरकार के पक्ष में संतुलन बनाये है.
  • बिल पर राज्य सरकार की मुहर लगते है 3 देशों के गैर मुस्लिम अल्पसंख्यको को भारत की नागरिकता पाना आसान हो जायेगा.
  • यह लगभग 126 वाँ संविधान संशोधन बिल होगा. जो की लोकसभा में पास हो गया है.
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