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शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोग || Use of teaching aids in classroom teaching

शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोग || Use of teaching aids in classroom teaching
शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोग || Use of teaching aids in classroom teaching

शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोग || Use of teaching aids in classroom teaching

शिक्षण अधिगम सामग्री का अर्थ

जिन सामग्रियों के माध्यम से शिक्षण को सरल व प्रभावी बनाया जाता है।उन्हें शिक्षण अधिगम सामग्री कहते हैं। इन्हें शार्ट में T.L.M कहते हैं और इसका अंग्रेजी में फुल फॉर्म teacher learning material होता है। शिक्षण अधिगम सामग्री में कक्षा अध्यापन के समय में डस्टर ,खड़िया ,संकेतक श्याम पट्ट, और पाठ्यपुस्तक आज के युग में अध्यापन की एक प्रकार से अनिवार्य सामग्री है।

शिक्षण अधिगम सामग्री का महत्व

शिक्षण अधिगम सामग्री के महत्व को निम्न प्रकार से देखा जा सकता है।

  1. ध्यान से संबंधित तत्वों को समझना ।
  2. समझी हुई विषय वस्तु को आत्मसात करना।
  3. पाठ्यांश को रुच्यात्मक बनाना।
  4. पाठ्यांश को समझने में विद्यार्थियों का ध्यान केंद्रित कराना। शिक्षण अधिगम सामग्री के माध्यम से पाठ्यांश का कोई भी अंश कितना भी कठिन हो।उसे सरलता से समझाया जा सकता है।

शिक्षण अधिगम सामग्री की विशेषताएं

1.शिक्षण अधिगम सामग्री की निम्नलिखित विशेषताएं होती हैं ।

2.शिक्षण अधिगम सामग्री ऐसी हो जिसमें कम लागत लगी हुई हो।

3.शिक्षण अधिगम सामग्री ऐसी हो जो विभिन्न प्रकार के उद्देश्यों की पूर्ति करती हो।

4.शिक्षण अधिगम सामग्री आकर्षक एवं रुचि पूर्ण होनी चाहिए।

5.शिक्षण अधिगम सामग्री विभिन्न प्रकार के रंगों का प्रयोग करना चाहिए।

6.शिक्षण अधिगम सामग्री में प्राकृतिक वस्तुओं का प्रयोग करना चाहिए।

7.शिक्षण अधिगम सामग्री में अनुपयोगी पदार्थों का प्रयोग करना चाहिये।


शिक्षण सहायक सामग्री का वर्गीकरण ( Classification Of Teaching Aids)
 

शिक्षण सहायक सामग्रियों को दो वर्गों में विभाजित किया गया है-

● इन्द्रियाँ आधारित

● तकनीकी आधारित

इन्द्रियाँ आधारित शिक्षण सहायक सामग्री वो होती है जिसमे इंद्रियों का प्रयोग होता है। जैसे आंख का, कान का या दोनों का या फिर जिसमे क्रिया होती है करके प्रत्यक्ष रूप से सिखाया जाता है।

जबकि तकनीक आधारित शिक्षण सहायक सामग्री में तकनीक की मदद से सिखाया जाता है।

इन्द्रियाँ आधारित शिक्षण सहायक सामग्री

ये 4 प्रकार की होती हैं-

  1. श्रव्य सामग्री
  2. दृश्य सामग्री
  3. श्रव्य-दॄश्य सामग्री
  4. क्रियात्मक साधन
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1- श्रव्य सामग्री

  • इन सामग्रियों के द्वारा कानो से सुचना ग्रहण की जाती है। 
  • इस से बच्चा कही भी बैठा-बैठा ज्ञान प्राप्त कर सकता है। 
  • इस सामग्री के उदहारण है-रेडियो,ग्रामोफ़ोन,टेप-रिकॉर्डर आदि।

● रेडियो

● टेपरिकार्डर

● ग्रामोफ़ोन

● लाऊडस्पीकर

● फोनोग्राफ/लिंग्वाफोन

उपरोक्त सभी श्रव्य सामग्री हैं क्योंकि इनसे केवल सुना ही जा सकता है।

दृश्य सामग्री :-

  • इस सामग्री द्वारा आँखों से देखकर वस्तु के वास्तविक गुणों की पहचान की जाती है। 
  • दृश्य सामग्री के अंतर्गत निम्न सामग्रियाँ आती है —
  1. श्यामपट्ट/बोर्ड :-
  • बोर्ड पर लिखी गई चीजों को बच्चा ध्यान से अवलोकन करता है। 
  • इस से विषय-वस्तू को स्पष्ट किया जा सकता है। 
 2. चित्र 
  • इस से बच्चे को किसी चीज के वास्तविक रूप,आकार,का पता चलता है। 
  • छात्रों के ज्ञान को स्थाई बनाने में मदद करते है। 
  • छात्रों की कल्पना शक्ति का विकास करने में मदद करता है। 

 3. चार्ट,ग्राफ  

  • इस के द्वारा बच्चा तुलनात्मक अध्यन करना सिखाता है। 
  • अनेक नियमो को स्पष्ट रूप से प्रस्तुत किया जा सकता है। 
  • तथ्यों को आसानी से और जल्दी से याद किया जा सकता है। 

4. पत्र-पत्रिकाएँ/समाचार-पत्र 

  • ये विभिन्न विषयो का ज्ञान कराने में मदद करती है। 
  • इनसे बच्चो की विभिन्न प्रकार के ज्वलंत मुद्दों का ज्ञान होता है। 

5. नक्शा/मैप 

  • इससे बच्चे में स्थान,दुरी और दिशाओं  सापेक्ष स्थिति को समझने की योग्यता विक्षित होती है।
  • इससे बच्चा विभिन्न संकेतो का उपयोग करना सीखता है और अपने परिवेश की आस-पास की स्थितियों  सापेक्ष स्थिति का ज्ञान अर्जित करता है। 
6.मॉडल/प्रदर्शन 
  • मॉडल किसी वस्तु का प्रतिरूप होता है। 
  • यह किसी वस्तु के वास्तविक रूप,आकार आदि को प्रस्तुत करता है जिससे बच्चे का ज्ञान स्थाई हो जाता है। 
  • जैसे-ग्लोब के द्वारा पृथ्वी के वास्तविक रूप,आकार को समझा जा सकता है। 

7. स्लाइड/फिल्म 

  • इनके द्वारा किसी वस्तु को हु-ब-हु दिखाया जा सकता है। 
  • इनके द्वारा उन वस्तुओ को दिखाया जा सकता है जिन्हे हम प्रत्यक्ष रूप में नहीं देख सकते है। 
  • विभिन्न प्रकार के जानवर,उनका परिवेश,इंधनो के प्रकार,वनो के प्रकार,भूकंप या ज्वालामुखी से हुई हानि आदि को दिखाया जा सकता है। 

8. टिकट/समय सारणी (टाइम-टेबल)

  • इस से बच्चो को वास्तविक जानकारी मिलती है। 
  • इससे बच्चो में अवलोकन कौशल का विकास होता है। 
  • इससे सैद्धांतिक तथ्यों को व्यवहारिक रूप से समझाया जा सकता है।

उपरोक्त सभी दृश्य सामग्री हैं क्योंकि इनको केवल देखा जा सकता है।

3- श्रव्य-दृश्य सामग्री

  • इन सामग्रियों से बच्चे अधिकतम इन्द्रियों उपयोग होता है और बेहतर ज्ञान हासिल करने के लिए सभी इन्द्रियों का उपयोग आवश्यक है। 
  • ये सामग्रियाँ बहु-आयामी बुद्धि आधारित कक्षा के लिए अत्यंत उपयोगी होती है। 
  • इनके उपयोग से किसी भी विषय-वस्तु को रोचक,सरल एवं बोध-गम्य बनाया जा सकता है। 
  •  इस से बच्चो का मनोरंजन भी होता है और ज्ञान स्थाई बन जाता है। 
  • उदहारण-टेलीविजन,फिल्म प्रोजेक्टर आदि। 

● टेलीविजन

● कठपुतली

● कम्प्यूटर-

कंप्यूटर आधारित अधिगम एवं शिक्षण से तात्पर्य एक ऐसे माध्यम से है,जिसके अंतर्गत अत्यधिक सूचनाओं को कम समय में प्रेषित किया जा सके। यह विद्यार्थियों द्वारा उनकी पाठ्यपुस्तकों,कक्षा-कक्ष के अंतर्गत की गई चर्चा ,आदि के माध्यम से सीखी गई विषय-वस्तु से सम्बंधित ज्ञान को मजबूत बनाने का एक शक्तिशाली माध्यम है। कंप्यूटर आधारित अधिगम एवं शिक्षण हमें जटिल विषय-वस्तुओ को समझने के योग्य बनाने वाला शक्तिशाली माध्यम है।

                                                          वर्तमान समय में विद्यार्थियों के अधिगम हेतु उनके विषयों से संबधित समस्त ज्ञान एवं विषय-वस्तु कंप्यूटर सी डी  पर उपलब्ध कराई जा रही है। इसका उपयोग विद्यार्थी स्कूल के साथ-साथ घर पर रहते हुए भी कर सकते है। इसके अतिरिक्त इंटरनेट पर विभिन्न विषयों से सम्बंधित वृहद ज्ञान संगृहीत है ,जिसका उपयोग विद्यार्थी अपने ज्ञान में वृद्धि करने हेतु,विषयगत तथ्यों को सिखने हेतु,शोध कार्यो ,नये अनुसन्धान आदि हेतु कर सकते है।
                                                      कंप्यूटर पर सी.डी.अथवा इंटरनेट में माध्यम से उपलब्ध विषय-वस्तु का प्रस्तुतीकरण इतना प्रभावशाली एवं विस्तृत होता है की विद्यार्थी इसे आसानी से समझ पाता है। शिक्षा के क्षेत्र में कंप्यूटर का उपयोग बहुत ही प्रभावी रूप में हो रहा है। कक्षा में विज्ञानं परियोजनाओं के निर्माण,रिपोर्ट तैयार करने,जानकारिया एकत्रित करने तथा अंतर्क्रियात्मक अधिगम मूल के रूप में कंप्यूटर का परिचलन बढ़ा है। कंप्यूटर का उपयोग शिक्षक के पूरक के रूप में किया जा रहा है। कंप्यूटर आधारित शिक्षा के अंतर्गत ऐसे अनेक सॉफ्टवेयर उपलब्ध है जो विभिन्न विषयो की क्रमबद्ध जानकारी देते है। मल्टीमीडिया(ध्वनि,चित्र,एनीमेशन एवं वीडियो से युक्त)सी. बी. टी सॉफ्टवेयर किसी भी विषय को प्रभावी ढंग से समझाने में बहुत उपयोगी है। आजकल इंटरनेट के माध्यम से ऑनलाइन लर्निंग एवं ट्रेनिंग संभव है। इसके अंतर्गत विद्यार्थी अपने घर में बैठे हुए अपने शिक्षक से बात कर सकता है तथा अपनी जिज्ञाषाएँ शांत कर सकता है। आज आभावी कक्षा-कक्ष(Virtual Class Room )वास्तविकता बन गए हैं। इसलिए कंप्यूटर शिक्षा के क्षेत्र में बहुत ही महत्वपूर्ण हैं। 

उपरोक्त दी हुई सामग्री श्रव्य-दृश्य शिक्षण सहायक सामग्री है क्योंकि इन्हें सुना भी जा सकता और देखा भी जा सकता है।

4- क्रियात्मक साधन

  • इस के द्वारा प्राप्त ज्ञान वास्तविक होता है। 
  • इनके द्वारा नई-नई चीजों का अध्ययन किया जाता है। 
  • इससे बालको को व्यक्तिक अनुभव की प्राप्ति होती है। 
उदाहरण :- भ्रमण 
  • किसी ऐतिहासिक स्थान का भ्रमण 
  • किसी संग्रहालय का भ्रमण 
  • किसी उद्यान का भ्रमण 

● रोल प्ले

● मेले

● प्रदर्शनियाँ

● भ्रमण

● प्रयोगशाला

इन सब मे प्रत्यक्ष करके सीखा सिखाया जाता है।

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तकनीकि आधारित शिक्षण सहायक सामग्री (Technology Based Teaching Aids)

ये 3 प्रकार की होते हैं-

  • सरल हार्डवेयर
  • जटिल हार्डवेयर
  • सॉफ्टवेयर

सरल हार्डवेयर

● Epidiascope-ऐपीडास्कोप एक वैज्ञानिक उपकरण है। इसका प्रयोग चित्रों को पर्दे पर प्रक्षेपण के लिए प्रयोग किया जाता है।

● स्लाइड प्रक्षेपी

● मयादीप

● फ़िल्म पट्टी प्रोजेक्टर

जटिल हार्डवेयर

● रेडियो

● टेलीविजन

● टेपरिकार्डर

● कम्प्यूटर

सॉफ्टवेयर

● स्लाइड

● फ़िल्म पट्टियां

● चित्र, चार्ट

● मानचित्र, फोटोग्राफ

● ग्राफ

शिक्षण सहायक सामग्री का कक्षा शिक्षण में उपयोग

श्रव्य सहायक सामग्री 

 
(1) मौखिक उदाहरण – मौखिक उदाहरणों का प्रयोग प्रमुखतया सूक्ष्म भावों के शब्द चित्र खींचने के लिए किया जाता है। किसी वस्तु स्थिति या विचार को मौखिक कथन या वार्तालाप के माध्यम से सरल स्वरूप प्रदान करने में उदाहरणों का प्रयोग जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में करते हैं।
 
(2) ग्रामोफोन – श्रव्य साधनों का पुराना उदाहरण हैं -ग्रामोफोन। इसके माध्यम से किसी घटना, विवरण, गीत, कहानी, वार्तालाप आदि सुना जा सकता है।
 
(3) टेप रिकाॅर्डर – टेप रिकाॅर्डर ग्रामोफोन का वैज्ञानिक एवं विकसित रूप है। इसके माध्यम से महत्त्वपूर्ण भाषण अथवा सामग्री टेप करके स्थायी तौर पर रखी जा सकती है।
 
(4) रेडियो – श्रव्य साधन और मनोरंजन उपकरण की दृष्टि से रेडियो सर्वविदित उपकरण है।
 

दृश्य सहायक सामग्री –

 
(1) श्यामपट्ट (ब्लैकबोर्ड) –
  (अ) इसे अध्यापक का विश्वसनीय मित्र कहते है । यद्यपि यह स्वयं कोई दृश्य सामग्री नहीं हैं, तथापि इसका उपयोग
     एक अच्छी दृश्य सामग्री के रूप में किया जा सकता है।
  (ब) श्यामपट्ट कार्य की सफलता अध्यापक पर निर्भर करती हैं। श्यामपट्ट का प्रयोग रेखाचित्र, ग्राफ, मानचित्र, पाठ सार
     तथा गृहकार्य देने के लिए किया जा सकता है।
 
(2) प्रतिरूप –
  (अ) पर्यावरणीय अध्ययन शिक्षण में प्रतिरूप का बङा महत्त्व है। प्रतिरूप को कक्षा में प्रदर्शित करने से छात्रों को
     वास्तविक वस्तु का ज्ञान होता है।
 उदाहरण के लिए भूगोल शिक्षण में ज्वालामुखी पर्वत के प्रतिरूप को छात्रों को दिखाया जा सकता हैं
   (ब) प्रतिरूप के अंग एवं कार्य आदि को सरल तथा स्पष्ट भाषा में छात्रों को समझाना चाहिए।
 
(3) बुलेटिन बोर्ड (सूचना पट्ट) –
  (अ) यह प्लाई वुड, मोसोनाइट या मजबूत गत्ते का बना होता हैं। इस पर प्रदर्शन सामग्री को लगाने के लिए ड्राइंग
     पिन्स का प्रयोग किया जाता है।
  (ब) बुलेटिन बोर्ड का प्रयोग प्रतिभाशाली छात्रों की स्वनिर्मित रचनाएँ, देश-विदेश की घटनाएँ एवं समाचार प्रतिदिन
    लिखकर किया जा सकता है।
 
(4) फ्लैनल (खादी) बोर्ड –
  (अ) फ्लैनल बोर्ड प्लाई वुड अथवा भारी कार्ड बोर्ड पर गोंद पर चिपकाया हुआ फ्लैनल अथवा खादी का कपङा होता
     है जो कि एक सम धरातल पर चिपकाया जाता है।
  (ब) कार्ड बोर्ड के छोटे-छोटे टुकङों पर तैयार चित्रों को फ्लैनल बोर्ड पर चिपकाया जाता हैं।
 
(5) रेखाचित्र –
   (अ) रेखाचित्र विभिन्न विषयों के शिक्षण में बङी प्रभावोत्पादक सहायक सामग्री है।
   (ब) इसमें रेखाओं तथा प्रतीकों के द्वारा अंतः संबंध स्पष्ट किए जाते हैं।
   (स) इसमें विषय वस्तु से संबंध किसी चित्र अथवा परिस्थिति का रेखाओं के माध्यम से सांकेतिक प्रदर्शन होता है।
 
 
(6) मानचित्र –
   (अ) मानचित्र छोटे पैमाने से प्रदर्शित सम धरातल पर दिखाये जाने वाला पृथ्वी का चित्र होता है। चित्रों के समूह को
     एटलस कहा जाता है।
   (ब) इसके द्वारा छात्रों के सम्मुख अमूर्त वस्तुओं का ज्ञान मूर्त कर दिया जाता है।
   (स) मानचित्र में अत्यधिक तथ्य नहीं होने चाहिए।
   (द) संकेत स्पष्ट तथा पैमाना निश्चित होना चाहिए।
   (य) मानचित्र का उपयोग उचित समय पर करना चाहिए तथा अवसर समाप्त होने पर उसे हटा देना चाहिए।
 
(7) चित्र –
   (अ) चित्र बालकांे की जिज्ञासावृत्ति एवं कल्पनाशक्ति को बढ़ाने में मदद करता है।
   (ब) चित्र सरल, सही और सत्य रूप में प्रदर्शित करना चाहिए।
   (स) चित्रों का आकार कक्षा के आकार के अनुकूल तथा उसमें शीर्षक दिया हुआ होना चाहिए।
 
(8) ग्लोब –
   (अ) ग्लोब गोल आकृति पर त्रिपक्षीय चित्र है।
   (ब) ’’ग्लोब पृथ्वी के धरातल का शुद्धतम रूप से प्रतिनिधित्व करता है। इसका प्रयोग उस समय करना चाहिए जब
      स्थान, आकार, दूरी, दिशा तथा भूमि की बनावट एवं सागर आदि की सापेक्षिक समस्याओं का प्रतिनिधित्व कराना
      हो।’’      -माइकेलिस
   (स) ग्लोब प्रदर्शन विधि द्वारा पढ़ाए जाने वाले प्रमुख प्रकरण – 1. पृथ्वी की आकृति 2. उत्तरी-दक्षिणी गोलार्द्ध 3.
       अक्षांश-देशांतर रेखाएँ 4. पृथ्वी की गति आदि।
 
(9) चार्ट्स –
   (अ) चार्ट किसी घटना या क्रांति का क्रमिक विकास दिखाने के लिए प्रयोग में लाया जाता है।
   (ब) चार्टों में जलवायु तथा तापक्रम आदि का प्रदर्शन भी सुगमता से किया जा सकता है।
   (स) चार्ट के द्वारा किसी वस्तु का अंतः संबंध तथा संगठन, भावों, विचारों तथा विशेष स्थलों को दृश्यात्मक रूप से
       प्रदर्शित किया जाता है।
 
(10) पोस्टर, कार्टून पोस्टर –
   (अ) यह सहायक सामग्री किसी सूचनात्मक ज्ञान एवं व्यंग्यात्मक अभिव्यक्ति को स्पष्ट करने का सरल माध्यम है।
   उदाहरण – 1. भारत की विभिन्नता में एकता को भारत में बसने वाले लोगों को एक पोस्टर में अपनी-अपनी वेशभूषा
   में प्रस्तुत कर दर्शाया जा सकता है।
   2. बच्चों की अच्छी आदतों, दहेज प्रथा, पर्दा प्रथा, धूम्रपान, वनों की सुरक्षा आदि को पोस्टर एवं कार्टून के माध्यम से
     स्पष्ट किया जा सकता है।
   (ब) पोस्टर का प्रयोग करने से पूर्व उनके आकार, प्रकार, रंग व उपयुक्तता का पूरा-पूरा ध्यान रखना चाहिए क्यांेकि
     त्रुटिपूर्ण पोस्टर एवं कार्टून से गलत धारणा बन जाती है।
 
(11) स्लाइड, फिल्म स्ट्रिप्स –
   (अ) स्लाइड तथा फिल्म स्ट्रिप्स की सहायता से बालक प्रत्येक चीज को बङे आकार में पर्दे पर देखते हैं।
   (ब) यांत्रिक उपकरण के माध्यम से एक-एक परिस्थिति को जिन चित्रों के सहारे प्रदर्शित किया जाता है, वह
      स्लाइड्स होती है।
   (स) स्लाइड्स छोटे आकार की फोटो नेगेटिव रिल तथा काँच पर कैमरे द्वारा उतारे गए चित्र होते हैं जिन्हें फिल्म
       स्ट्रिप प्रोजेक्टर द्वारा प्रदर्शित किया जाता है।

श्रव्य-दृश्य सहायक सामग्री एवं उपयोग विधि –

 
 (1) नाटक –
   (अ) किसी भी विषय को रंगमंच पर नाटक के माध्यम से सजीव बनाया जा सकता है।
   (ब) इनके द्वारा संवाद बोलने एवं रंगमंच पर अभिनय करने की कला में दक्षता आती है।
   (स) नाटक के माध्यम से पढ़ाये जाने वाले प्रमुख प्रकरण – भगवान राम का आदर्श चरित्र, पन्नाधाय का त्याग,
       सत्यवादी राजा हरिश्चन्द्र आदि।
 
(2) चलचित्र –
   (अ) चलचित्र में छात्र व्यक्तियों को वास्तविक परिस्थितियों में कार्य करते हुए देखता है।
   (ब) शिक्षण में चलचित्रों का प्रयोग प्रथम महायुद्ध के पश्चात् होने लगा था परंतु उनका 1931 के बाद पर्याप्त मात्रा में
      उपयोग होने लगा।
   (स) चलचित्र छात्रों की सभी ज्ञानेन्द्रियों को प्रभावित करते हैं। शिक्षाप्रद चलचित्रों को छात्रों को देखने के लिए
      प्रोत्साहित करना चाहिए।
 
(3) टेलीविजन –
   (अ) टेलीविजन जनसंपर्क का अत्यंत प्रभावशाली माध्यम है जिसके द्वारा समाचार-पत्रों, रेडियो, सिनेमा आदि सभी
     की एकसाथ पूर्ति हो सकती है।
   (ब) सरकार इसके माध्यम से नागरिकों को सामाजिक, आर्थिक, राजनैतिक, शैक्षिक आदि पक्षों की जानकारी देती है।
   (स) टेलीविजन का आविष्कार 1925 में डाॅ. बेवर्ड ने किया था। हमारे देश में सर्वप्रथम 1959 में नई दिल्ली में इसका
      केन्द्र खोला गया।
 
(4) कठपुतली –
   (अ) निर्जीव कठपुतलियों के माध्यम से पर्यावरणीय अध्ययन शिक्षण की अधिकांश विषय वस्तु अध्यापन नाटकीयकरण
      विधि से बङे प्रभावशाली ढंग से किया जाता है।
 
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